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चासनाला त्रासदी की टीस… आपातकाल और काला पत्थर

– मुकुंद

भारतीय इतिहास में वर्ष 1975 हर साल दो ‘बड़ी’ घटनाओं के लिए याद किया जाता है। एक आपातकाल। दूसरा चासनाला कोयला खान त्रासदी। झारखंड (तबके बिहार का भू-भाग ) के कोयलांचल धनबाद में हर साल चासनाला खान दुर्घटना की टीस उठती है। हर साल हजारों आंसू गिरते हैं…। चासनाला शहीद स्मारक में कालकलवित 375 मजदूरों को श्रद्धांजलि देकर एशिया की बड़ी खान दुर्घटनाओं में से एक के जख्म फिर हरे हो जाते हैं। …और आंख बंद करते ही इस त्रासदी पर बनी फिल्म ‘काला पत्थर’ ( 24 अगस्त, 1979) का नायक अमिताभ बच्चन सामने आने लगता है।


समूचे देश के लिए वो डरावनी तारीख 27 दिसंबर, 1975 है। चासनाला कोलियरी की डीप माइंस खान में जल प्लावन से इन मजदूरों की जिंदगी दफन हो गई थी। इस जल प्लावन से कोयलांचल ही नहीं, पूरा देश दहल उठा था। आज (बुधवार) फिर शहीद स्मारक में इनकी बरसी पर वेदी के पास सर्व धर्म सभा कर फूल चढ़ाए जाएंगे। इस खान का यह काला अध्याय न्यायिक जांच पड़ताल का भी हिस्सा बना। सालों बाद अधिकारियों की लापरवाही सामने आई। दरअसल इस खान में रिसने वाले पानी को एकत्र करने के लिए बड़ा बांध बनाया गया था। हिदायत भी दी गई थी की बांध के 60 मीटर की परिधि में कभी भी विस्फोट नहीं किया जाएगा।

कहते हैं कि कुछ अधिकारियों ने इस चेतावनी की अनदेखी की। 27 अक्टूबर को शक्तिशाली विस्फोट हुआ और इस लापरवाही की वजह से इन खनिकों ने जल समाधि ले ली। दुर्घटना के कई महीनों बाद तक खान से पानी नहीं निकल सका। इसके लिए पोलैंड और रूस के वैज्ञानिकों की मदद ली गई। …और जब पानी बाहर आया तो अपने पीछे सड़ी-गली लाशों का अंबार छोड़ गया। इनमें से अधिकांश की पहचान बैटरी वाली बत्ती, टोपी, कपड़ों आदि से की गई। महीनों दामोदर नदी के किनारे जल रही चिताओं पर गिद्ध और चील मंडराते रहे। न्यायिक जांच के निष्कर्षों के बाद तत्कालीन कुछ अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया। चासनाला, धनबाद से 20 किलोमीटर दूर है। यह खान कोल इंडिया के भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की थी।

देश में आपातकाल लगाए जाने की वजह से दिसंबर की भीषण ठंड में राजनीतिक पारा गरम था। चासनाला त्रासदी के समय केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। चंडीगढ़- हरियाणा और पंजाब की राजधानी भी है। कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस अधिशवन के बहाने सिटी ब्यूटीफुल की सुखना लेक के नजारों का लुत्फ उठा रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र को चंडीगढ़ में ही डरा देने वाली यह खबर मिली। सुनते ही दोनों एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। बोले कुछ नहीं…। इंदिरा गांधी ने आंखें बंदकर गहरी सांस ली। और जब आंख खोली तो जगन्नाथ मिश्र इशारा समझकर कुर्सी से उठे और अधिवेशन स्थल से बाहर निकलकर तेज कदमों से कारों की तरफ बढ़ गए। मगर इस दौरान देशी-विदेशी अखबारों ने सवालों की बौछार कर दी। डॉ. मिश्र उलटे पांव पटना लौटे। तब तक खान मजदूरों के परिवारों में असंतोष फैल चुका था। तब धनबाद जिले के आरक्षी अधीक्षक तारकेश्वर प्रसाद सिन्हा ने तत्कालीन उपायुक्त लक्ष्मण शुक्ला के साथ मिलकर इस असंतोष को दबाया।

इस दौर में देश का हिंदी सिनेमा समानांतर और यथार्थवाद को बड़े परदे पर दिखाने की ओर बढ़ रहा था। निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा लीक से हटकर सिनेमा गढ़ रहे थे। कहते हैं कि उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार में इस समाचार का फॉलोअप पढ़ा। उन्हें पहली नजर में ही यह त्रासदी क्लिक कर गई। उन्होंने डायरी में अपनी आगामी फिल्म का नाम लिखा-काला पत्थर। पटकथा तब की मशहूर जोड़ी सलीम-जावेद से लिखवाई। इसमें अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा को लिया। मगर सिल्वर स्क्रीन की सारी चमक अमिताभ बच्चन ले उड़े। दरअसल काला पत्थर- जंजीर और दीवार के साथ एक मजबूत त्रयी का विद्रोही संसार रचती है। यही त्रयी अमिताभ को हिंदी सिनेमा के पहले एंग्री यंगमैन की पगडंडी से ले जाकर महानायक के शीर्ष पायदान पर पहुंचा देती है। काला पत्थर के इस नायक के सीने में सुलग रहा कसमसाहटों का समंदर जब बड़े परदे पर फटा तो लाखों युवा दर्शकों के दिलों में दबे लावा को भी अपने साथ बाहर ले आया। यह भी त्रयी है कि अमिताभ की सफलता के बही-खातों में दर्ज इन तीनों फिल्मों की पटकथा सलीम-जावेद ने ही लिखी।

यहां यह भी सनद किया जाना चाहिए कि यही वह हिंदी फिल्में हैं जिन्होंने इंडस्ट्री की नेहरूवादी रोमांटिक धारा का रुख मोड़कर नायक का चेहरा बदल दिया। अमिताभ खुद भी काला पत्थर को अपने जीवन का खास शाहकार बताते हैं। कुछ फिल्म समीक्षकों का मानना है कि काला पत्थर की आत्मा धनबाद की चासनाला कोयला खदान से नहीं जोसेफ कोनराड के उपन्यास लॉर्ड जिम के ज्यादा करीब है। फिल्म के ट्रिगर प्वाइंट को जरूर चासनाला खान हादसा माना जा सकता है। कहते तो यह भी हैं कि फिल्म को सच के करीब रखने के लिए यश चोपड़ा अपनी पूरी यूनिट के साथ झारखंड (तब बिहार) की गिद्दी खदानों मे शूटिंग करने पहुंचे थे। अमिताभ बच्चन के सुपर स्टार बनने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा के साथ उनकी यह पहली फिल्म थी। दोनों के बीच पूरी फिल्म में कभी ट्यूनिंग नहीं बनी। बहरहाल आज कोयलांचल कथित कोल माफिया सूर्य देव सिंह के बेटे और झारिया के पूर्व विधायक संजीव सिंह की वजह से सुर्खियों में है। एक हत्याकांड में सलाखों के पीछे संजीव सिंह कुछ समय पहले इच्छा मृत्यु की मांग कर चुके हैं।

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