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उत्तराखंड के बिना अधूरी है भारत की आजादी की कहानी, इस क्रांति ने छुड़ाए थे अंग्रेजों के पसीने

15 अगस्त, 1947 को हम सभी अंग्रेजी हुकूमत से आजाद (independent from British rule) हुए थे. ये आजादी हमें इतनी आसानी से नहीं मिली थी. भारत ने खून पसीना एक कर के अंग्रेजों से इस आजादी को पाया था. आजादी की इस लड़ाई में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi), जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), सरदार बल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhai Patel) का नाम सर्वप्रथम शामिल किया जाता है. देश की आजादी की कहानी त्याग, बलिदान से भरी है. लाखों हिंदुस्तानियों ने आजादी की लड़ाई में कुर्बानी दी. आजादी के मतवालों ने सीने पर गोलियां खाकर अंग्रेजी हुकूमत को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया. आज हम बात करेंगे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले (Almora district) की. सल्ट विधानसभा का छोटा सा गांव खुमाड़ (Village Khumad) है. खुमाड़ के 8 क्रांतिकारियों की शहादत को देश सलाम करता है.

8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत हुई. महात्मा गांधी के आह्वान पर समूचा देश उठ खड़ा हुआ. उत्तराखंड के लोगों ने भी भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. अल्मोड़ा में आंदोलन की अगुवाई करते हुए 8 क्रांतिकारी शहीद हुए. 9 अगस्त की सुबह महात्मा गांधी, गोविंद बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का असर कुमाऊं पर भी पड़ा. कुमाऊं के लोगों ने आंदोलन की मशाल को और तेज कर दिया. अंग्रेजी हुकूमत ने उत्तराखंड में भी कांग्रेस के नेताओं की धरपकड़ तेज कर दी. उनकी गिरफ्तारी के लिए जगह-जगह छापेमारी की जाने लगी. सालम में 11 अगस्त को पटवारी दल सांगड़ गांव में राम सिंह आजाद के घर पहुंचा. घर पर बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे.


राम सिंह आजाद बहाना कर फरार हो गए. 19 अगस्त को 14 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई. 25 अगस्त 1942 को सैकड़ों लोग तिरंगे ढोल नगाड़ों के साथ धाम देव पर जमा होने लगे. खबर मिली कि अंग्रेज फौज पूरे दल बल के साथ गांव की तरफ आ रही है. नजदीक पहुंचने पर अंग्रेज फौजी ने जनता को डराने के लिए हवाई फायर की. हवाई फायरिंग से जनता भड़क गई. बचाव में ब्रिटिश सेना पर पत्थरबाजी शुरू हो गई. मैदान पूरी तरह युद्ध में तब्दील हो गया. एक तरफ दलबल के साथ ब्रिटिश सेना थी. दूसरी तरफ कुमाऊं के निहत्थे स्वतंत्रता सेनानी थे. ब्रिटिश सैनिकों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर फायरिंग शुरू कर दी. एक गोली चेकुना गांव निवासी नरसिंह धक के पेट में लगी.

नरसिंह धक मौके पर शहीद हो गए. अंग्रेजों की दूसरी गोली टीका सिंह कन्याल को लगी. गोली लगने से टीका सिंह कन्याल बुरी तरह घायल हो गए. कुछ समय के बाद शहादत नसीब हुई. शाम होते-होते संघर्ष खत्म हो गया. कौमी दल के सदस्य पकड़े गए. उन पर कई तरह के जुल्म ब्रिटिश सैनिकों ने ढाए. सल्ट वासियों की वीरता से बौखला कर 5 सितंबर 1942 को अंग्रेजी हुकूमत ने एसडीएम जॉनसन को विद्रोह समाप्त करने के लिए भेजा. उस समय खुमाड़ में आंदोलनकारियों की बड़ी जनसभा चल रही थी.

तत्कालीन एसडीएम जॉनसन ने भीड़ पर अंग्रेज सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया. गोलीबारी में हेमानंद, उनके भाई गंगाराम, बहादुर सिंह मेहरा चूड़ामणि समेत चार लोग मौके पर शहीद हो गए. गंगाधर शास्त्री, मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह, नारायण सिंह समेत एक दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हुए. अल्मोड़ा के देघाट में भी 2 क्रांतिकारियों हरीकृष्ण उपती और हीरामणि बडोला शहीद हुए. शहादत के बाद महात्मा गांधी ने खुमाड़ को कुमाऊं का बारदोली नाम भी दिया.

आजादी की लड़ाई में आज भी अल्मोड़ा जिले का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है. अल्मोड़ा के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत को भारत आजाद होने तक चैन से नहीं बैठने दिया. अंग्रेजी हुकूमत को लगातार एहसास दिलाते रहे की पहाड़ी लोग आजादी के कितने मतवाले हैं. देश की आजादी के लिए जान न्योछावर करनेवालों में कुछ गुमनाम शहीद भी हैं. अल्मोड़ा की क्रांति को आज भी बड़े फख्र के साथ याद किया जाता है.

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