खरी-खरी

लड़ेंगे वो… फंसेंगे हम…

रूस मुहाने पर… अमेरिका सिरहाने पर… पूरी दुनिया के चौधरी बने अमेरिका की चौधराहट को इस बार दुनिया के दूसरे शक्तिशाली देश रूस ने चुनौती देकर चक्रम बना दिया है… अमरिका बौखला रहा है… धमका रहा है, लेकिन रूस आंखें दिखा रहा है… ताकत बता रहा है… आगे बढ़ता जा रहा है… उसे न तो अमेरिका डरा पा रहा है न फ्रांस या ब्रिटेन समझा पा रहा है… समस्या उसकी अपनी है… उसके अपने देश के पड़ोसी उंगलीभर के यूक्रेन ने उसका जीना हराम कर रखा है… अमेरिका उसे बरगला रहा है… हस्तक्षेप कर हिमाकत बढ़ा रहा है… रूस की ताकत के लिए चुनौती बनता जा रहा है… अपने देश की रक्षा और यूक्रेन की आजादी के लिए यदि रूस आंखें दिखाए… ताकत बताए… अमेरिकी गुर्गों को ठिकाने लगाए तो यह उसका हक है… अपने देश की रक्षा करना… हिमाकतों को हराना… ताकत का इस्तेमाल कर विरोधियों को झुकाना हर देश का अधिकार होता है… उसे कोई कैसे ललकार सकता है… लेकिन चौधराहट के अहंकार में डूबा अमेरिका अपनी गैंग के देश फ्रांस, ब्रिटेन के साथ एकजुट होकर मुकाबले पर आमादा हो जाए तो भारत कहां जाए… विश्वयुद्ध की इस आहट में भारत की मुसीबत यह है कि रूस भारत का पारंपरिक मित्र रहा है… भारत की रक्षा के लिए रूस ने हर वक्त अपना हाथ बढ़ाया… हौसला दिलाया… यहां तक कि चीन से युद्ध के समय अपना बेड़ा तक पहुंचाया… लेकिन अमेरिका ने भारत के खिलाफ हर पैंतरा आजमाया… पाकिस्तान को हथियार देकर आतंकवाद बढ़ाया… परमाणु प्रयोग के समय देश पर प्रतिबंध लगाया… भारत को कमजोर करने की हर कोशिश में डूबे अमेरिका को तब समझ में आया जब लादेन के आतंकी हमले ने उसे उसकी करनी का एहसास कराया… तब जाकर भारत को लेकर उसका रवैया बदल पाया… अमरीकी मुस्कुराहटों पर फिसली मोदी सरकार ने भी रूस को नजर अंदाज कर ओबामा से हाथ मिलाया… ट्रंप को गले लगाया… बाइडेन के लिए गलीचा बिछाया… लेकिन अब फैसले का वक्त आया कि भारत अपने पारिवारिक मित्र के खिलाफ अमेरिका की गैंग में शामिल होगा या रूस का साथ देगा… विश्व युद्ध का हिस्सा बनेगा या तटस्थ रहेगा… शांति की मिन्नतें करेगा या युद्ध रोकने की पहल का हिस्सा बनेगा… भारत के सामने चुनौती भी है और मौका भी… यदि भारत अमेरिका को समझा पाए रूस को पीछे हटा पाए तो उसका कद और बढ़ जाए… दुनियाभर में उड़ान भरकर संबंध बनाने और देश का रुतबा बढ़ाने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के सामने भी अपना दावा साबित करने की चुनौती है… भारत के संबंध प्रायोजित हैं या प्रायोगिक यह भी इस कवायद से साबित हो जाएगा… यदि भारत अपने वजूद का उपयोग कर इस युद्ध को रोक पाएगा तो संयुक्त राष्ट्र में भी अलग स्थान बना पाएगा… लेकिन यदि वह तटस्थता अपनाएगा… केवल सुलह-समझौते के बयान देकर फर्ज निभाएगा और युद्ध टल नहीं पाएगा तो अमेरिका भी हमेें आजमाएगा…

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