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‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ के लिए उदयपुर में आपका स्वागत है…!

– कौशल मूंदड़ा

चहुंओर अरावली की उपत्यकाओं से घिरे, वन सम्पदा से आच्छादित झीलों की खूबसूरती से लबरेज उदयपुर अब तक प्रकृति पर्यटन, एडवेंचर पर्यटन, विरासत पर्यटन, लोक-संस्कृति पर्यटन, चिकित्सकीय पर्यटन, कार्यशाला पर्यटन आदि कई तरह के पर्यटन का केंद्र बन चुका है और एक निजी सर्वे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाह स्थल (वेडिंग डेस्टिनेशन) के रूप में दुनिया के 11 देशों में भारत के सिर्फ उदयपुर को पसंद किया गया है। इन सभी के बीच हाल ही उदयपुर की शान में एक नई इबारत और जुड़ गई है। ‘छोटा कश्मीर’ के नाम से विख्यात राजस्थान का झीलों का शहर उदयपुर अब ‘सियासी बाड़ाबंदी’ के लिए भी मुफीद लगने लगा है। राज्यसभा चुनाव में राजस्थान कांग्रेस की ‘सफल बाड़ाबंदी’ के बाद हाल ही महाराष्ट्र में उत्पन्न हुई राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर उदयपुर के पर्यटन उद्योग जगत को फिर मौका मिल सकता है। और आने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी उदयपुर उम्मीद तो बांध ही सकता है।

जी हां, कांग्रेस के नव संकल्प ‘चिंतन’ शिविर के तुरंत बाद ही उदयपुर को राज्यसभा चुनाव के लिए ‘बाड़ा’ बनाए जाने से उदयपुर ने ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ के भी नए द्वार खोल दिए हैं। इसके पीछे राजनीतिक कारण तो अपनी जगह हो सकते हैं, लेकिन तकनीकी कारण भी महत्वपूर्ण हैं जिन्हें आज के समय के लिए जरूरी ‘सामरिक’ कारण भी कहा जा सकता है। उदयपुर में ऐसी कई विशेषताएं हैं जो इसे ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ के लिए मुफीद बनाती हैं।

अब उदयपुर के पर्वतीय क्षेत्रों को ही ले लीजिये। आप पहाड़ों के किनारे सड़क पर चल रहे हैं, लेकिन आपको भनक भी नहीं लग सकेगी कि उसी पहाड़ी के पार्श्व में एक खूबसूरत रिसोर्ट आपका स्वागत करने को आतुर है। सड़क से आगे जाकर एक सामान्य सा मार्ग आपको लेना पड़ेगा जो सामान्य तौर पर एकदम से नजर नहीं आएगा और उस मार्ग पर काफी आगे चलने के बाद आपको ‘जंगल में मंगल’ की नई दुनिया के दर्शन होंगे। और यह सिर्फ एक रिसोर्ट की ही बात नहीं है, अपितु उदयपुर शहर के समीपवर्ती से लेकर उदयपुर जिले के पड़ोसी राजसमंद जिले तक की पहाड़ियों के बीच में ऐसे कई रिसोर्ट मिल जाएंगे तो इसी तरह उदयपुर शहर से झाड़ोल, अहमदाबाद आदि मार्गों पर भी पहाड़ियों की ओट में ऐसे कई ‘आसानी से नजर नहीं आने वाले’ रिसोर्ट डेवलप हो चुके हैं।

अब आप पूछेंगे कि सामरिक दृष्टि के क्या मायने हैं तो जनाब जब ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ होता है तब वहां बिना पहचान वाला परिंदा भी पर नहीं मारे, ऐसी व्यवस्था जरूरी होती है और खासतौर से वे परिंदे जो संदेशों को दूर तक पहुंचाते हैं, जी हां आप सही समझे, यहां मीडिया की ही बात हो रही है। मीडिया दूर ही रहे, यह प्रयास पुरजोर किए जाते हैं, हालांकि इसके बावजूद मीडिया अपना कर्तव्य बखूबी निभाता रहा है। ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ करने वालों को दूसरे तरह के परिंदे यानी छुटभैया नेताओं की चिंता नहीं होती क्योंकि वे तो इसी डर से ‘अनुशासन’ में रहते हैं कि कहीं संदेह के घेरे में आ गए तो आगे का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग जाएगा।

अब इस प्रयास के लिए पहला विकल्प यही माना जा सकता है कि जगह ऐसी ढूंढो जहां के मुख्य द्वार से कुछ दिखाई न दे। तो जनाब जब सामान्य तौर पर मुख्य सड़क से ही रिसोर्ट नजर नहीं आता और रिसोर्ट में प्रवेश के बाद भी कई मीटर अंदर जाकर रिसोर्ट का आभास होता है, ऐसे स्थल उदयपुर में अब बहुत हैं, हां ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ के स्तर के हिसाब से आवासीय क्षमता वाला रिसोर्ट भी जरूरी है। लेकिन, आवासीय क्षमता का बिंदु भी अब इसलिए चिंता का विषय नहीं है क्योंकि ‘वेडिंग डेस्टिनेशन’ के रूप में विश्व विख्यात होने में यह क्षमता भी शामिल ही है। हमारे यहां वेडिंग डेस्टिनेशन हो तो बाराती और घराती को मिलाकर नहीं-नहीं करके भी 100 न्योते तो सपरिवार वाले हो ही जाते हैं। ऐसे में उदयपुर में पिछले सालों में डेवलप हुए रिसोर्ट्स में इस दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखा गया और आवासीय क्षमता पर्याप्त रखी गई है।

उदयपुर में राज्यसभा चुनाव को लेकर हुए ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ में भी अच्छी-खासी संख्या एक ही रिसोर्ट में खप गई और बाहर उतनी ही सूचना आई जितनी ‘वे’ बाहर भेजना चाहते थे। हां, एयरपोर्ट से लेकर ‘बाड़ाबंदी स्थल’ के मुख्य द्वार तक मुस्तैद मीडिया को यह जानने में कोई परेशानी नहीं हुई कि कौन आया और कौन गया, लेकिन अंदर क्या चल रहा है, उसके लिए ‘अंदर’ से आ रही सूचना से ही संतोष करना पड़ा।

जो भी हो, नवसंकल्प ‘चिंतन’ शिविर और उसके बाद ‘बाड़ाबंदी’ ने उदयपुर में अब ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ का एक और आयाम खोल दिया है। अब राजनीति में इसे गलत माना जाए या सही माना जाए, उसकी चिंता करने वाले करते रहेंगे, लेकिन उदयपुर में तो इस नए आयाम से भी पर्यटन की अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में कुछ अंक और बढ़ जाएं तो और क्या चाहिए। और अब तो उदयपुर हर उस मौके के स्वागत में आतुर रहेगा कि कब कहां पर इस तरह की परिस्थितियां बने और उदयपुर में ‘बाड़ाबंदी पर्यटन’ सरसब्ज हो।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। )

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