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मोदी सरकार के 7 फैसले जिन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगी

नई दिल्‍ली (New Dehli)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)के नेतृत्व में भाजपा (B J P)ने 2014 में पूर्ण बहुमत (majority)के साथ आई। दूसरी बार 2019 में भी केंद्र की सत्ता पर काबिज (occupied)हुई। भाजपा की जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी योजनाओं और बड़े फैसलों की अहम भूमिका रही है। इन फैसलों पर कई बार विपक्ष का तो कई बार आम जनता की नाराजगी का सामना भी पार्टी ने किया। मोदी सरकार के इस 9 साल के सफरनामे में लिए गए अब तक के कुछ बड़े फैसलों पर एक नजर…।


1- नोटबंदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी का एलान किया। उन्होंने घोषणा की, कि अब 500 और 1000 हजार रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। प्रधानमंत्री ने यह फैसला मुख्य रूप से कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए लिया था। हालांकि, इस फैसले की विपक्षी दलों ने काफी आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा 1000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराया था।

2- अनुच्छेद 370
अनुच्छेद 370 का इतिहास देश के बंटवारे से जुड़ा है। इस अनुच्छेद के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी मसले से जुड़े कानून को राज्य में सीधे प्रभावी नहीं बना सकती थी। भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर की सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य था। पांच अगस्त 2019 को केंद्र की केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 की वैधता को बरकरार रखा है और सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा खत्म करने का राष्ट्रपति का आदेश वैध था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान है।

3- तीन तलाक
सुप्रीम कोर्ट ने सालों पुरानी तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक बता सरकार को कानून बनाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्देश के बाद केंद्र सरकार ने तीन तलाक पर कानून बनाया। इस कानून में यह बताया गया कि एकसाथ तीन बार तलाक बोलना या लिखकर निकाह खत्म करना अपराध माना जाएगा। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगस्त 2017 में आया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को निरस्त करते हुए इसे असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया।

4– दिल्ली अध्यादेश विधेयक
दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था। जिसमें दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे। इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए थे।

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। केंद्र ने ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023′ लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया।

5- आधार वैधानिकता
आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। आधार के लिए एकत्र किए जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की बात कही गई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। वहीं आधार को लेकर कहा कि प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों से आधार कार्ड नहीं मांग सकेंगी।

6- सेंट्रल विस्टा परियोजना
पुराने संसद भवन की स्थिरता की चिंताओं के कारण 2010 में मौजूदा भवन को बदलने के लिए नए संसद भवन के प्रस्ताव के लिए एक समिति की स्थापना तत्कालीन अध्यक्ष मीरा कुमार ने 2012 में की थी। भारत सरकार ने 2019 में एक नए संसद भवन के निर्माण के साथ प्रधानमंत्री के लिए नया कार्यालय और संसद भवन की संकल्‍पना के साथ सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना शुरू हुई। नए भवन के लिए भूनिर्माण अक्टूबर 2020 में शुरू हुआ और 10 दिसंबर 2020 को पीएम द्वारा आधारशिला रखी गई थी।

इस मामले में पहले तो हाईकोर्ट ने एक लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका खारिज कर दी। इसके बाद ये विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी, 2021 को अपना फैसला सुनाया और 2:1 के बहुमत से 13,500 करोड़ रुपये की सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को हरी झंडी दी।

7- राफेल डील
भारत सरकार और फ्रांस के बीच लड़ाकू विमान राफेल को लेकर एक करार हुआ था। भारत ने इस करार के तहत फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल खरीदे थे। ये सौदा साल 2015 में पीएम मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान हुआ था। इस मामले में विपक्ष द्वारा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। विपक्ष का आरोप था कि राफेल सौदा अधिक कीमत पर किया गया। राफेल मामले की गूंज चुनाव तक सुनाई दी।

हालांकि, सरकार ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया। इसके बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील को लेकर दो बार याचिकाएं दायर की गई थी। कोर्ट ने राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर अपनी अंतिम मुहर लगा दी थी।

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