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सरकारी तौर पर भारत का नाम इंडिया कब पड़ा, किसने ये नाम दिया; क्या है पूरा इतिहास?

नई दिल्ली: देश (Country) में इन दिनों भारत और इंडिया (India Vs Bharat) शब्द को लेकर राजनीति (Politics) जोरों पर हैं. केंद्र सरकार (Central government) जहां जी20 के उपलक्ष्य में भेजे जा रहे आधिकारिक निमंत्रण पत्र पर भारत लिख कर भेज रही है तो वहीं विपक्ष इसका विरोध कर रहा है. इन सब के बीच कुछ लोगों की दिलचस्पी यह जानने में है कि भारत का नाम आखिर इंडिया कब पड़ा था? आखिर भारत के संविधान (constitution) में इंडिया नाम की कहानी क्या है और इसका पूरा इतिहास क्या है?

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश की आजादी के बाद भारत के संविधान में भारत शब्द ही नहीं था. 4 को नवंबर, 1948 मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. BhimRao Ambedkar) ने जो मसौदा पेश किया था उसमें भारत नाम का कहीं भी जिक्र नहीं था. दस्तावेज बताते हैं कि संविधान सभा (constituent Assembly) के सदस्यों के काफी विचार विमर्श के बाद भारत शब्द को मसौदा पेश किए जाने के लगभग एक साल बाद संविधान के ड्राफ्ट में जोड़ा गया था.

क्या है पूरी कहानी?
18 सितंबर 1949 को डॉ आंबेडकर ने जब संविधान के ड्राफ्ट को संशोधित किया और आर्टिकल 1 के तहत कहा गया कि इंडिया, जोकि भारत है राज्यों का एक संघ होगा. संविधान की पहली लाइन ही संविधान सभा के सदस्य एचवी कामथ को पसंद नहीं आई और उन्होंने इसका विरोध कर दिया. उन्होंने सुझाव दिया कि भारत या फिर अंग्रजी में लिखा जाए कि इंडिया राज्यों का एक संघ होगा. इस वाक्य के लिए उन्होंने आयरलैंड के संविधान का तर्क दिया.


जोरदार बहस के बीच कई पहलुओं पर चर्चा
संविधान सभा के सदस्यों के बीच भारत नाम रखे जाने को लेकर जोरदार बहस हुई. संविधान सभा के सदस्य सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, कल्लूर सुब्बा राव, राम सहाय और हर गोविंद पंत ने भारत शब्द के लिए जोरदार बहस की. संविधान सभा के एक सदस्य सेठ गोविंद दास ने कहा, इंडिया न ही प्राचीन शब्द है और न ही भारतीय संस्कृति से निकला. उन्होंने कहा न ही ये शब्द वेदों में भी नहीं पाया जाता है. ब्रिटिश के भारत आने के बाद इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ.

सेठ गोविंद दास ने कहा, भारत शब्द यहां के वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों, महाभारत और पुराणों के साथ-साथ चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के लेखन में भी पाया गया है. ये शब्द भारत की संस्कृति के बारे में विस्तार से बताता है.

‘तो भारत के लोग नहीं सीख पाएंगे स्वराज’
इस बहस में तय हुआ कि भारत शब्द किसी भी तरह पिछड़ा शब्द नहीं है बल्कि भारत के इतिहास और संस्कृति के अनुरूप है. दास ने कहा, ‘अगर हम इस मामले में सही फैसले पर नहीं पहुंचते हैं तो इस देश के लोग स्वशासन के महत्व को नहीं समझ पाएंगे.

फिर तय हुआ ‘इंडिया दैट इज भारत’
काफी बहस के बाद यह तय हुआ कि भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषाओं में लिखित ऐतिहासिक साहित्य, धार्मिक ग्रंथों, लोगों की आस्थाओं, उनके जुड़ाव और भावनाओं का मान रखते हुए भारत शब्द को उसका सम्मान दिया जाएगा. इन सब पहलुओं पर विचार के बाद ही भारत के संविधान की शुरुआत में लिखा गया, इंडिया दैट इज ‘भारत’.

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