नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) (Economically Weaker Section-EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण (10 percent reservation) के मामले में केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा है कि ईडब्ल्यूएस कोटे पर सामान्य वर्ग का ही अधिकार है, क्योंकि एससी-एसटी (SC-ST) के लोगों को पहले से ही आरक्षण के ढेरों फायदे मिल रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला की संविधान पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार को कहा कि पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग पहले से ही आरक्षण के फायदे ले रहे हैं। सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को इस कानून के तहत लाभ मिलेगा जो कि क्रांतिकारी साबित होगा।
वेणुगोपाल ने कहा, यह कानून आर्टिकल 15 (6) और 16 (6) के मुताबिक ही है। यह पिछड़ों और वंचितों को एडमिशन और नौकरी में आरक्षण देता है और 50 फीसदी की सीमा को पार नहीं करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में एससी और एसटी के लिए आरक्षण अलग से अंकित हैं। इसके मुताबिक, संसद में, पंचायत में और स्थानीय निकायों में और प्रमोशन में भी उन्हें आरक्षण दिया जाता है। अगर उनके पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए हर तरह का फायदा उन्हें दिया जा रहा है तो ईडब्लूएस कोटा पाने के लिए वे ये सारे फायदे छोड़ने को तैयार होंगे।
बता दें कि जनवरी, 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत ईडब्लूएस कोटा लागू किया गया था। अब इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। पांच जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी में भी गरीब लोग हैं तो फिर यह आरक्षण केवल सामान्य वर्ग के लोगों को क्यों दिया जाता है। इससे 50 फीसदी के आरक्षण नियम का उल्लंघन होता है। पहले से ही ओबीसी को 27 फीसदी, एससी को 15 और एसटी के लिए 7.5 फीसदी कोटा तय किया गया है। ऐसे में 10 फीसदी का ईडब्लूएस कोटा 50 फीसदी के नियम को तोड़ता है।
विवाह रद्द करने के बारे में शक्तियों का पैमाना तय करेगी शीर्ष अदालत
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह इस मुद्दे पर 28 सितंबर को विचार करेगा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों के इस्तेमाल के लिए व्यापक पैमाना क्या हो सकता है, जिसके तहत बिना परिवार न्यायालय में भेजे आपसी सहमति से विवाह को रद्द किया जा सके। संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष कोर्ट के आदेशों और निर्देशों को लागू करने से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के पास दो सवाल विचार के लिए लंबित हैं। पहला अनुच्छेद 142 के तहत मिली ऐसी शक्ति का इस्तेमाल बिलकुल न किया जाए या ऐसी शक्ति का इस्तेमाल अलग-अलग मामलों के तथ्यों के अनुसार किया जाए।