नई दिल्ली। दिल्ली की राउज एवेन्यू (Rouse Avenue) स्थित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट दीपक कुमार की अदालत (Court of Magistrate Deepak Kumar) ने मध्यो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी और बहन नीता पुरी (Ratul Puri – Neeta Puri) को घोटालों से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में बरी करने का आदेश दिया है। दोनों पर 1100 करोड़ से अधिक रुपयों के घोटाले का आरोप है। अदालत ने दोनों के अलावा मोजर बेयर फर्म को भी बरी करने का आदेश दिया।
वर्ष 2019 में मामले में सीबीआई ने मोजर बेयर इंडिया लिमिटेड के खिलाफ और साल 2020 में मोजर बेयर सोलर लिमिटेड के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। सीबीआई के मुताबिक, मोजर बेयर और उसके निदेशकों पर विभिन्न बैंकों के साथ घोटाले का आरोप था।
सीबीआई ने मोजर बियर सोलर लिमिटेड से जुड़े 747 करोड़ रुपये और मोजर बियर इंडिया लिमिटेड से संबंधित 354 करोड़ रुपये के कथित बैंक धोखाधड़ी मामलों में पुरी और अन्य के खिलाफ अलग-अलग आरोपपत्र दायर किए थे।
सीबीआई मामलों की विशेष अदालत ने मई में मोजर बियर इंडिया लिमिटेड से जुड़े मामले में पुरी और अन्य को आरोप मुक्त किया था, जबकि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने जनवरी में मोजर बियर सोलर लिमिटेड मामले में भी इसी तरह का फैसला सुनाया था।
किसी आरोपी को आरोप-निर्धारण के चरण में तब आरोप मुक्त किया जाता है , जब अदालत को यह विश्वास हो जाता है कि अभियोजन पक्ष के दावों में आपराधिक आचरण का संकेत देने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई ने मोजर बियर सोलर लिमिटेड मामले में आरोप मुक्त करने के आदेश को चुनौती देते हुए एक पुनरीक्षण याचिका दायर की है, जबकि मोजर बियर इंडिया लिमिटेड के फैसले को चुनौती देने की प्रक्रिया वर्तमान में चल रही है।
दोनों मामलों में बैंकों ने आरोप लगाया था कि पुरी और अन्य ने ऋण नहीं चुकाया, जिसके कारण उन्हें भारी वित्तीय नुकसान हुआ। बैंकों ने इन मामलों में अपने ज्यादातर अधिकारियों की जांच और उन पर मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, जिससे माना जा रहा है कि मामला कमजोर हुआ।
सीबीआई ने बैंकों की शिकायतों पर 2019 में मोजर बियर इंडिया लिमिटेड के खिलाफ और 2020 में मोजर बियर सोलर लिमिटेड के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी और एजेंसी की अलग-अलग इकाइयों ने इन दोनों मामलों की जांच की थी।
सीबीआई को उस समय बड़ा झटका लगा, जब अलग-अलग अदालतों ने एजेंसी के आरोप पत्रों के आधार पर आरोपियों पर मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि प्रस्तुत सामग्री प्रथम दृष्टया आपराध स्थापित करने में विफल रही है।
विशेष न्यायाधीश संजीव अग्रवाल ने 24 मई को मोजर बियर इंडिया लिमिटेड मामले में फैसला सुनाया। अदालत का कहना है कि उपर्युक्त दलीलों से यह निष्कर्ष निकलता है कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप मुख्य रूप से दीवानी प्रकृति के हैं। इसमें अपराध के लक्षण नहीं हैं। मुख्य रूप से दीवानी प्रकृति के इस विवाद को आपराधिक प्रकृति का रंग दिया जा रहा है।
अदालत ने कहा कि पेश किए गए सुबूत आरोपियों के खिलाफ संदेह तो उत्पन्न हो सकता है, लेकिन गंभीर संदेह नहीं होता इसलिए मुकदमा चलाने योग्य मामला नहीं बनता।
इसी प्रकार, सीजेएम दीपक कुमार ने मोजर बियर सोलर लिमिटेड मामले में आपराधिक मंशा नहीं पाई और फैसला दिया कि आरोपी के खिलाफ कोई ऐसा अपराध स्थापित नहीं होता, जिसके आधार पर औपचारिक रूप से आरोप तय किये जा सकें। वहीं सीबीआई ने पुनरीक्षण याचिका के तौर पर इस फैसले को चुनौती दी है, जिसपर जुलाई में सुनवाई होनी है।
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