ब्‍लॉगर

बुलंद इरादों के साथ चाहिए प्रभावी कार्यान्वयन

– गिरीश्वर मिश्र

अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की मानें तो सुख या खुशहाली के मूल में धर्म होता है। इस धर्म के मूल में अर्थ यानी विविध प्रकार के संसाधन की व्यवस्था होती है। सुनने में धर्म का मूल अर्थ में ढूढ़ना कुछ असंगत-सा लगता है पर विचार करें तो स्पष्ट हो जाता है कि धर्म का संबंध नैतिक मानदंड के पालन से है और वह वस्तुत: आचरण का प्रश्न बन जाता है और उसका प्रमुख माध्यम स्वयं मनुष्य का शरीर ही होता है। इसीलिए शरीर को साधन कहते हुए महाकवि कालिदास कहते हैं- शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्। शरीर ठीक तरह चले, स्वस्थ रहे इसके लिए उचित आहार, विहार, मनन और मनोरंजन की अपेक्षा होती है। यानी अन्न, जल, व्यवसाय और उत्पादन आदि आर्थिक कार्य भी होने चाहिए। इसलिए धर्म के मूल को अर्थ में पाना उचित जान पड़ता है।

अपनी विचार श्रृंखला के अंत में निष्कर्ष रूप में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ‘राज्य के समृद्ध होने से प्रजा भी सुखी होती है।’ अर्थात यदि राज-कोष परिपूर्ण हो तो आम जन भली-भाँति सुख चैन से रह सकेंगे और उनमें आश्वस्ति कि अनुभूति और जीवन की सार्थकता का अहसास होगा। यह कहने के पीछे यही भाव है कि राज्य के पास यदि पर्याप्त संसाधन हों तो वह प्रजा के सुख के लिए सुविधाएं और साधनों की व्यवस्था करेगा।

आचार्य चाणक्य की इस अर्थ नीति को यदि विस्तार में समझा जाय तो वित्त व्यवस्था और उसके नियोजन-नियमन की गतिकी (डायनेमिक्स) कुछ-कुछ समझ में आने लगती है। देश का बजट भी सरकार और प्रजा के बीच इन्हीं रिश्तों का खाका प्रस्तुत करता है। दायित्व सरकार और प्रजा दोनों पक्षों का बनाता है। दोनों मिलकर देश बनाते हैं और दोनों को मिलकर देश चलाना चाहिए। हाँ, सरकार का दायित्व दुहरा हो जाता है क्योंकि उसे जनता की दृष्टि भी समझनी होती है और जनता पर शासन भी करना पड़ता है।

केंद्र सरकार का वार्षिक बजट देश-मन की मुराद पूरी करने वाले नुस्खे की तरह होता है। समाज के सभी वर्ग हर साल इस आस के साथ इसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं कि इस बार कहाँ और कितनी राहत मिलने वाली है और जीना आसान हो सके। आधुनिकीकरण के साथ सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाएं सामाजिक जीवन की आपसी परिधि से बाहर निकल कर औपचारिक तंत्र के अधीन होती गईं और आर्थिक नियोजन सरकारी व्यवस्थाओं के अधीन होता गया। पर अर्थ होने बाद अर्थ या वित्तीय संसाधनों की बदौलत ही जीवन में रस का प्रवाह हो पाता है इसलिए लोग बड़ी उत्सुकता के साथ बजट प्रावधानों के प्रकट और निहित अभिप्राय ढूढने की कोशिश करते हैं।

बजट के प्रावधानों के साथ और उनके बीच ही जीने का सारा कारोबार होता है। इस बार का बजट इस अर्थ में ख़ास है कि दो साल लम्बी चली कोविड की वैश्विक महामारी झेलने के बाद कमरतोड़ आकस्मिक खर्चों के सिलसिले पर कुछ अंकुश लगाने के बाद यह पेश हुआ है। आवागमन की बंदिशों के साथ ही आम जनों के लिए विभिन्न प्रकार के अवसर भी कम पड़ते गए। महामारी ने सामान्य जीवन को तो अस्त-व्यस्त किया ही अनेक स्तरों पर व्यापार-वाणिज्य में पहल के अवसरों पर भी उसका बुरा अवसर पड़ा।

इस बीच बढ़ती महंगाई की मार और रोजगार के अवसरों की कमी के चलते हताशा के स्वर भी उठाते रहे जो स्वाभाविक भी है। स्कूली बच्चों और युवा विद्यार्थियों को ऑनलाइन प्रवेश, पढ़ाई और परीक्षा से ऊब और घुटन होती रही। उनकी शिक्षा की गुणवत्ता के साथ बड़े पैमाने पर समझौते हुए। दफ्तरों का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस तरह से बदलते परिवेश में बजट को लेकर सबके मन में उत्सुकता थी कि इस बार क्या कुछ मिलेगा।

जो बजट पेश हुआ वह सिर्फ एक ही सरोकार से जुड़ा था कि आज की विकट परिस्थितियों में देश को आर्थिक मजबूती कैसे दी जाय। प्रस्तुत किए गए बजट को किसी भी तरह लोकप्रिय या फिर चुनावी तैयारी वाला घोषणा पत्र नहीं कहा जा सकता। इन सबसे दीगर बजट में देश की जरूरतों और जमीनी हकीकत को पहचान कर आ रहे बदलाव को गहनता से समझने की कोशिश की गई। इसमें बहुतों को आशा के विपरीत दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर व्यापक धरातल पर सोचने की सार्थक कवायद साफ़ झलक रही है। इससे सरकार की नेकनीयत और समावेशी लोक-कल्याण की मंशा और सोच भी प्रकट होती है। सरकार की प्राथमिकताएं साफ़ दिख रही हैं। अमृतकाल में आगे के पचीस साल की योजना बनानी है। यह नीतिगत एजेंडा पेश करता दिखता है। कोरोना महामारी से उबरती अर्थव्यवस्था में प्राण-संचार के लिए बजट में जरूरी प्रावधान किए गए हैं। इसके लिए जरूरी अवसंरचना पर विशेष खर्च किया जाना तर्कसंगत है। बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने को प्राथमिकता देते हुए बहुत सारी घोषणाएं की गई हैं। विश्व के आर्थिक क्षितिज पर भारत के आगे बढ़ने की आहट सुनी जा सकती है।

गौरतलब है कि महामारी के मद्देनजर दो सालों में कर नहीं बढ़ाया गया। इस बार आयकर की दरें पूर्ववत बरकरार रखी गईं हैं। करदाताओं को जरूर अपने आयकर रिटर्न को सुधारने का अवसर दिया गया है। बजट में देश के विकास की नींव को मजबूत करने के अनेक प्रस्ताव दे गए हैं। देश में पचीस हजार किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग तैयार होंगे। 5 जी स्पेक्ट्रम कि नीलामी होगी। ग्रामीण क्षेत्र में भी यातायात की स्थिति सुधारने के लिए सड़क के लिए अधिक धन आवंटित किया गया है। तीन सालों में चार सौ वन्दे मातरम ट्रेनों को चलाया जायगा। इन सबसे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि कामकाज में भी सुविधा होगी। साठ लाख नई नौकरियों की भी घोषणा की गई है।

इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्त्व की बातें की गई हैं। स्कूली और उच्च शिक्षा को लेकर सोलह हजार करोड़ के अनुदान की बढ़ोत्तरी हुई है। यह संतोष की बात है कि बारहवीं कक्षा तक क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई की व्यवस्था की जायगी। मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा की दिशा में यह प्रभावकारी कदम होगा। वर्चुअल प्रयोगशालाओं की मदद से गणित और विज्ञान की शिक्षा को सुदृढ़ किया जायगा। डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना एक बड़ा और महत्वाकांक्षी कदम है। गिफ्ट सिटी गांधीनगर में विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर को स्थापित करने का अवसर होगा। राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क को प्रगतिशील और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने का प्रावधान है। दो सौ ई-विद्या टीवी चैनेल चलेंगे। देश में शिक्षा की जरूरतों को लेकर सरकार चिंतित जरूर है पर बजट का आवंटन अपर्याप्त है। नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन के लिए अतिरिक्त प्रावधान आवश्यक है।

यह हर्ष की बात है कि कृषि के क्षेत्र में सरकार एमएसपी के अंतर्गत गेंहूँ और धान की खरीदी के लिए 2.37 लाख करोड़ रूपयों का प्रावधान किया है। कुल 1008 मीट्रिक तन अनाज खरीदा जायगा। वर्ष 2023 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जायगा। आर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को डिजिटल और हाईटेक सेवा प्रदान करने के साथ तिलहन के उत्पाद को बढ़ाने के उपाय भी किये जाएंगे। कृषि ऋण के लिए 18 लाख करोड़ की व्यवस्था की गई है। स्टार्ट अप को गति दी जायगी।कोरोना काल में पिछड़ने की भरपाई के लिए ये सारे प्रयास महत्वपूर्ण साबित होंगे।

नारी शक्ति के महत्त्व को ध्यान में रख कर महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य, सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण-2 आदि के द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य और पालन -पोषण को सुदृढ़ आधार देने की बात कही गई है। महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य और सशक्तिकरण की दिशा में महत्वाकांक्षी प्रयास होगा। रक्षा बजट में कुल आवंटन 4.7 करोड़ से बढ़ाकर 5.25 लाख करोड़ किया गया है। यहाँ ख़ास बात यह है कि रक्षा अनुसंधान के मद में 25 फीसदी निजी उद्योगों, स्टार्टअप तथा अकादमियों के लिए है। घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा दिया जायगा।

आधुनिकीकरण पर 12 प्रतिशत अधिक खर्च होगा। आतंरिक सुरक्षा पर 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बजट में 16.59 प्रतिशत की वृद्धि के साथ प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू होगा और गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वाश्य कौन्सेलिंग डिजिटल हेल्थ सिस्टम आदि की सराहनीय पहल होगी। नदियों को जोड़ने और आयात शुल्क में बदलाव जैसे प्रस्ताव विकास को गति देंगे।

कुल मिलाकर यह बजट बदलते भारत को गति के लिए शक्ति का संयोजन करने वाला दिख रहा है। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संसाधनों और खर्चों में संतुलन बैठाने की कोशिश साफ़ झलक रही है। इस नक़्शे को अमली जामा पहनाने की चुनौती बहुत बड़ी है। आशा है सरकारी अमला इस महत्वाकांक्षी अभियान को लक्ष्य तक पहुंचाने में जन सहयोग भी ले सकेगा। जन भागीदारी को सुनिश्चित करने पर ही इसके लाभ मिल सकेंगे।

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)

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