- 23 मार्च को आखरी बार कोशिश होगी बची दुकानों की नीलामी की पांच प्रयास रहे विफल, शासन भी ले सकता है आज-कल में निर्णय
इंदौर। प्रदेश सरकार की नई आबकारी नीति ठेकेदारों को रास नहीं आ रही, जिसके चलते इंदौर सहित अधिकांश बड़े जिलों में अभी तक सभी शराब दुकानों के ठेके नहीं हो पाए हैं। इंदौर जिले में ही आधी शराब दुकानें नीलामी से बची हुई हैं और अभी 23 मार्च को फिर से टेंडर बुलाए गए हैं। अगर उसमें भी इन दुकानों की नीलामी नहीं होती है तो समझो कि 1 अप्रैल से आबकारी अमले को ही इन दुकानों का संचालन पड़ेगा।
64 समूहों में देशी-विदेशी 175 शराब दुकानें ठेके पर देने की प्रक्रिया 1 फरवरी से शुरू ही कई और 5 बार टेंडर बुलाने के बावजूद आधी ही दुकानें लगभग 650 करोड़ रुपए मूल्य की नीलाम हो सकी, वहीं लगभग इतनी ही नीलामी से शेष बची है। जिले की सभी दुकानों का आरक्षित मूल्य 1350 करोड़ रुपए तय किया गया। चालू वित्त वर्ष में 10 माह का ठेका 910 करोड़ रुपए में दो समूह बनाकर दिया गया था। अब संभवत: शासन 15 से 20 फीसदी आरक्षित मूल्य में कमी कर सकता है, ताकि बची दुकानें नीलाम हो सके। इस बार देशी दुकानों पर विदेशी शराब बेचने की अनुमति भी दी गई है।
शराब के ठेकेदारों को जहां इस बार आपत्ति है, वहीं उनका कहना है कि गत वर्ष की तुलना में 20 फीसदी राशि बढ़ा दी गई और दूसरी तरफ एमआरपी घटा दी, जिसके चलते शराब की कीमत 15 से 20 फीसदी कम हो जाएगी। यही कारण है कि देशी शराब के ठेके तो फिर भी चले गए, मगर विदेशी शराब के अभी बचे हैं। देशी के साथ विदेशी शराब बेचने की अनुमति देने के कारण ठेकेदारों का रुझान देशी शराब के ठेके लेने में अधिक नजर आया है। नई आबकारी नीति में छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर दुकानें नीलाम करने के प्रयास किए गए और ये दावा किया गया कि इससे राजस्व में भी इजाफा होगा और बड़े ठेकेदारों की मोनोपॉली समाप्त होगी। मगर हुआ इसका उलटा, इंदौर सहित अधिकांश बड़े जिलों में अभी तक शराब दुकानें नीलाम नहीं हो सकी हैं, जबकि 5 बार विभाग टेंडर की प्रक्रिया कर चुका है।
इंदौर जिले के सहायक आयुक्त आबकारी राजनारायण सोनी के मुताबिक अब 23 मार्च को फिर से बची दुकानों के लिए टेंडर बुलाए गए हैं। वहीं शासन स्तर पर निर्णय लिया जाना है। इंदौर जिले में 64 समूहों में देशी-विदेशी 175 दुकानों को बांटकर ठेके की प्रक्रिया की जा रही है और 1350 करोड़ रुपए इन सभी दुकानों का आरक्षित मूल्य तय किया गया है। 106 देशी और 69 विदेशी शराब दुकानें हैं। अभी वित्त वर्ष में दो समूहों को 10 माह का ठेका दिया गया। चूंकि दो महीने कोरोना के चलते निकल गए और कुछ समय आबकारी विभाग ने भी जिले की दुकानों का संचालन किया, उसके बाद ठेकेदारों ने इन दुकानों को नीलामी के जरिए लिया।
अब 12 महीने के हिसाब से 1130 करोड़ रुपए का ठेका माना गया, जिसमें 20 फीसदी की आगामी वित्त वर्ष के लिए वृद्धि की गई और 1350 करोड़ रुपए आरक्षित मूल्य के आधार पर इन दुकानों की नीलामी की जा रही है। अभी लगभग आधी दुकानों की नीलामी की प्रक्रिया बची है। इधर सूत्रों का कहना है कि शासन स्तर पर आरक्षित मूल्य घटाने का निर्णय लिया जा सकता है। संभवत: 20 फीसदी तक आरक्षित मूल्य घटा दिए जाने पर बची दुकानों की नीलामी भी हो जाएगी। दरअसल इंदौर जैसे जिलों में पहले से ही शराब दुकानें अत्यधिक महंगी हो गई है और इस बार शराब की कीमतों में कमी की घोषणा और उस पर 20 फीसदी की वृद्धि के चलते ठेकेदार इन महंगी दुकानों को लेने को तैयार नहीं है।
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