– आर. के. सिन्हा
जैविक कृषि में प्रयोग के लिए वर्तमान में ‘गौ कृपा अमृत’ हर प्रकार के फसलों के लिए वास्तव में अमृत है। ‘गौ कृपा अमृत’ ही ऐसा अकेला और हर प्रकार से सस्ता जैविक उर्वरक दिख रहा है जो हरेक फसल के लिए प्रभावकारी और उपयोगी है। इसे बनाने के लिए किसी भी किसान के पास मात्र एक देशी नस्ल की गौ माता की घर में उपलब्धता होनी चाहिए। उस एक देशी गौ माता की कृपा से ही एक किसान लगभग 15 से 20 एकड़ की सभी फसल के लिए पर्याप्त जैविक खाद बना सकता है और विषमुक्त फसल पैदा कर सकता है।
जैविक कृषि के लिए कौन-कौन से खाद चाहिए
सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि हमें अपनी जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए किस-किस प्रकार के उर्वरक चाहिए। हमें समझने की बात यह है कि सभी फसलों को तीन मुख्य प्रकार के तत्वों की आवश्यकता होती है जिन्हें नाइट्रोजन, फासफोरस और पोटाश के नाम से जाना जाता है। कृषि में लगभग 12 से 13 प्रकार के अन्य उर्वरकों की भी आवश्यकता फसलों को होती है, जिनमें कैल्शियम, मैग्नेशियम, मैगनीज, आयरन, बोरान, सल्फर, जिंक आक्साइड, कापर सल्फेट और कई प्रकार के अम्लों की भी जरूरत होती हैं जैसे ह्यूमिक एसिड, एमिनो एसिड, जिब्रालिक एसिड आदि की आवश्यकता हर प्रकार के फसलों को होती है। किन्तु सभी प्रकार के फसलों को हर प्रकार के तत्वों की आवश्यकता बराबर मात्रा में नहीं होती है। अब यदि हम रासायनिक खादों का प्रयोग करते हैं तो सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि खादों में जितने प्रकार के उर्वरक तत्व होते हैं, उनका जितना प्रयोग पौधों पर कर पाते हैं उतना तो ठीक है लेकिन वे पूरे डाले गये रसायनिक उर्वरकों की मात्रा का बहुत ही कम प्रतिशत लेते हैं। बाकी का उर्वरक जिसका उपयोग फसल नहीं कर पाती है वह खेत में पड़ा रह जाता है और खेत की जैविक कार्बन की प्रतिशत को लगातार घटाता रहता है। सामान्यतः जिस प्रकार प्रत्येक वर्ष हम 3 से 4 बार हर फसल में उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग करते हैं, उससे धीरे-धीरे जमीन की जैविक कार्बन की मात्रा शून्य हो जाती है और जमीन बंजर हो जाती है। उसमें पैदावार के उत्पादन की संभावना शून्य हो जाती है।
रासायनिक खादों का दूसरा दुष्परिणाम यह होता है कि जमीन में पड़े-पड़े ये रासायनिक उर्वरक बरसात के पानी, नदी-नालों के पानी और जल वितरण प्रणाली के पानी के साथ मिलकर जल को प्रदूषित करते हैं। जल के माध्यम से यह दूषित जल मानव एवं पशुओं के शरीर में प्रवेश कर हर प्रकार के असाध्य बीमारियों को जन्म देता है।
तीसरे प्रकार का दुष्परिणाम यह होता है कि जब भी तेज हवा चलती है, रासायनिक उर्वरक हवा के साथ मिलकर श्वांस प्रक्रिया के माध्यम से मानव शरीर और पालतू पशुओं के शरीर में प्रवेश कर उनके फेफड़े को खराब करते हैं। श्वांस प्रक्रिया से संबंधित बीमारियों खासकर कैंसर के कारण बनते हैं।
अन्य उर्वरकों से गौ कृपा अमृत कैसे अलग है?
सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि गौ कृपा अमृत है क्या? गौ कृपा अमृत और कुछ नहीं, देशी गौ माता के गोबर और गौमूत्र में विद्यमान लगभग पांच सौ से भी ज्यादा लाभकारी बैक्ट्रिया में से 60 से 70 अत्यंत प्रभावी बैक्ट्रिया को चिन्हित करके, उसे अलग करके, सुरक्षित करके और पोषित करके, विस्तारित किया हुआ एक ऐसा पोषक उर्वरक तत्व है जिसमें 60 से 70 प्रकार के लाभकारी बैक्ट्रिया करोड़ों की संख्या में विद्यमान रहते हैं, जो सभी प्रकार के उर्वरक तत्वों को वायुमंडल से खींचकर पौधे के पत्तों और जड़ों तक आवश्यकतानुसार पहुँचाने का काम करते हैं। अब यह ‘आवश्यकतानुसार’ शब्द ध्यान देने योग्य है। जहां एक ओर रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से पौधे की जड़ों और जमीन में आवश्यकता से अधिक डाला गया उर्वरक आपकी जमीन और वातावरण को नुकसान पहुंचाता है, वहीं गौ कृपा अमृत में विद्यमान जीवाणु पौधों को पोषक तत्व की पूर्ति तो अवश्य करते हैं, किन्तु; उतना ही, जितना पौधों की मांग या आवश्यकता होती है। इस प्रकार ये वायुमंडल से उतना ही उर्वरक खींचते हैं, जितना कि पौधों को चाहिए। न कम न ज्यादा। इस प्रकार यह उर्वरक जमीन को कतई नुकसान नहीं पहुंचाता है और न ही वातावरण को दूषित करता है।
गौ कृपा अमृत में विद्यमान पौष्टिक तत्व
गौ कृपा अमृत में जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि 60 से 70 प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु या बैक्टीरिया समूह उपलब्ध रहते हैं। उनमें से लगभग 10 प्रतिशत यानि कि 6 से 7 ऐसे बैक्टीरिया होते हैं जो वायुमंडल से आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन खींचकर पौधों को पहुँचाने का काम करते रहते हैं। लगभग इतने ही यानी 4 से 6 प्रकार के बैक्टीरिया फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक, वोरान आदि के लिए होते हैं जो पौधों के आवश्यकतानुसार ही पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाते हैं। इसी प्रकार लगभग 6 से 7 प्रकार के बैक्टीरिया ऐसे होते हैं जो फंगस विरोधी कार्य करते हैं और ये पौधों के जड़ों के आसपास भिन्न-भिन्न प्रकार के रायजोबियम या एजिक्टोबैक्टर की गांठें बना देते हैं, जिससे कि किसी भी प्रकार का शत्रु फंगस पौधे के जड़ों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं।
अब गौ कृपा अमृत का उपयोग हम सीधे पानी के साथ डालकर जमीन में भी छोड़ सकते हैं और छिड़काव की विधि से भी इनके पत्तों और फलों पर भी कर सकते हैं। यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि छिड़काव कभी भी वैसी हालत में नहीं करना चाहिए जब पौधों में फूल आ रहे हों। फूल आते वक्त पौधों पर छिड़काव करने से फूलों के नष्ट होने की संभावना बनी रहती है। लेकिन जब फूल बालियों में या छीमियों में परिवर्तित हो जाये तब उसके ऊपर छिड़काव करने में कोई हर्ज नहीं है, बल्कि फलों के विकास में मदद ही करता है।
एकबार यानी चार महीने वाली फसल को चार पानी और तीन महीने वाली फसल को तीन पानी में, हर पानी के साथ गौ कृपा अमृत जमीन में डालना लाभकारी है। इसी प्रकार, बीच में प्रत्येक सप्ताह गौ कृपा अमृत का 10 प्रतिशत यानि 15 लीटर के टैंक में डेढ लीटर गौ कृपा अमृत को 13 लीटर पानी के साथ मिलाकर पौधों के पत्तों और फलों पर छिड़काव कर दिया जाये, तो मेरा यह अनुभव है कि जैविक विधि से उत्पन्न उत्पाद किसी भी रसायनिक उर्वरक के प्रयोग से उत्पन्न उत्पाद से कभी भी मात्रा या क्वालिटी में कम नहीं होगा और यह पूर्णतः विषमुक्त भी होगा। हर प्रकार से खाद्य पदार्थ पौष्टिक भी होगा और ज्यादा स्वादिष्ट भी होगा।
तो यह हुई जैविक उर्वरक ‘गौ कृपा अमृत’ की बात
अगले अंक में हम बात करेंगे कि जैविक कीटनाशकों को कैसे तैयार करें जिससे कि फलों, सब्जियों और हर प्रकार के खाद्यान्न पदार्थों को पूरी तरह से कीटों और बीमारियों से बचाते हुये विषमुक्त फलों, सब्जियों और खाद्यानों का उत्पादन कर सकें।
(लेखक पूर्व सांसद और जैविक खेती विशेषज्ञ हैं।)
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