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private schools के शुल्क मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई आज

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच (Division Bench of Delhi High Court) ने कोरोना के दौरान छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क (Annual and development fee from students) नहीं लेने के दिल्ली सरकार के आदेश को निरस्त करने वाली सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर आज गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखेगा।

आज सुनवाई के दौरान वकील खगेश झा ने कहा कि सिंगल बेंच ने नोटिफिकेशन को निरस्त कर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया है। दिल्ली सरकार की ओर से वकील विकास सिंह ने कहा कि दिल्ली सरकार ने अप्रैल 2020 में आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत नोटिफिकेशन जारी किया था। दूसरा नोटिफिकेशन दिल्ली स्कूल अधिनियम के तहत जारी किया गया और लॉकडाउन तक फीस वसूलने पर रोक लगा दी गई। सिंह ने कहा कि 28 अगस्त, 2020 को नोटिफिकेशन जारी कर अप्रैल के नोटिफिकेशन को जारी रखने की बात की गई। तब कोर्ट ने पूछा कि क्या वो नोटिफिकेशन निरस्त कर दिया गया। तब विकास सिंह ने कहा कि हां।


सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस मामले के मेरिट में जाने के पहले ये जानना चाहता हूं कि ये वार्षिक और विकास शुल्क का मामला है। एक छात्र के लिए वार्षिक शुल्क कितना है। तब सिंह ने कहा कि ये करीब पूरी फीस का तीस फीसदी होता है। इस पर एक वकील कमल गुप्ता ने कहा कि ये हर छात्र पर सालाना दस से बीस हजार के बीच का होता है। तब कोर्ट ने कहा कि वो ये जानना चाहती है कि छात्रों और अभिभावकों पर कितना वित्तीय बोझ होगा। तब विकास सिंह ने कहा कि सिंगल बेंच को डिवीजन बेंच के फैसले को नजरअंदाज करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के राजस्थान में फीस वाले फैसले पर कहा कि ये हमारे मामले में लागू नहीं होता क्योंकि ये फैसला स्कूल खुलने के बाद लागू होने है जबकि अभी दिल्ली में स्कूल खुले ही नहीं हैं। राजस्थान में स्कूल खुल रहे थे। विकास सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले के बाद दुग्गल कमेटी ने रिपोर्ट दी थी, जिसमें वार्षिक और विकास शुल्क तय किया गया था। इस रिपोर्ट को दिल्ली सरकार ने स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

सुनवाई के दौरान खगेश झा ने कहा कि सिंगल बेंच और संविधान बेंच के रुख में काफी अंतर है। सिंगल बेंच ने जिन शुल्कों को वसूलने की अनुमति दी है उसे सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है। आनलाइन स्वीमिंग क्लास , आनलाइन दुबई टूर की भी फीस ली जा रही है। कोरोना संकट में स्कूलों की फीस की वजह से कई बच्चे निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में चले गए। उन्होंने कहा कि ट्रांसफर सर्टिफिकेट का भी कोई प्रावधान नहीं है। शिक्षा निदेशालय के पास कुछ अधिकार होने चाहिए। ये छात्रों के खिलाफ है। स्कूलों के सभी खर्चे बच रहे हैं। अधिकतर स्कूलों में संविदा कर्मचारी हैं। स्कूलों को अपना खर्च शिक्षा निदेशालय को बताना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि पिछले 7 जून को डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने निजी स्कूलों के संगठन एक्शन कमेटी अनऐडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट को नोटिस जारी किया था। पिछले 31 मई को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने दिल्ली सरकार के उन दो आदेशों को निरस्त कर दिया था जिसमें निजी स्कूलों को कोरोना के दौरान छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क नहीं लेने का आदेश दिया गया था। जस्टिस जयंत नाथ ने कहा था कि इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि वार्षिक और विकास शुल्क से स्कूल लाभ कमा रहे थे।

सिंगल बेंच के समक्ष दिल्ली के गैर सहायता प्राप्त 450 निजी स्कूलों के संगठन एक्शन कमेटी अनऐडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल ने याचिका दायर किया था। पिछले 28 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में दायर याचिका अभी लंबित है, जहां दिल्ली सरकार को बात रखनी चाहिए। (एजेंसी, हि.स.)

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