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कुछ कोरोना रोगियों में नहीं विकसित होती इम्यूनिटी : रिसर्च

बोस्न । एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना के गंभीर रोगियों में साइटोकिन के उच्चतम स्तर से दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित नहीं हो पाती है। इसकी वजह यह है कि ऐसे व्यक्तियों के शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने वाली कोशिकाओं का निर्माण बहुत कम होता है। साइटोकिन कोशिकाओं के बीच आणविक दूत के तौर पर काम करते हैं। यह एक प्रकार के प्रोटीन हैं जो कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं। शरीर द्वारा साइटोकिन के अनुचित उत्पादन से बीमारी हो सकती है।

अमेरिका स्थित हावर्ड यूनिवर्सिटी सहित दूसरे कई वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर शरीर में बड़ी संख्या में साइटोकिन का निर्माण हो रहा है तो कोरोना के कुछ गंभीर लक्षण पैदा हो सकते हैं। जर्नल सेल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार साइटोकिन के उच्चस्तर से सूजन बढ़ती है और अगर यह प्रक्रिया जारी रही तो साइटोकिन स्टार्म का निर्माण होता है। साइटोकिन स्टार्म कोरोना रोगियों को दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने से रोक सकता है। ऐसे व्यक्ति एंटीबॉडी का निर्माण करने वाली ‘बी’ प्रकार की बहुत कम कोशिकाएं बनाते हैं।

हार्वर्ड की तरफ से अध्ययन के सह लेखक शिव पिल्लई ने कहा, ‘हमने कई अध्ययनों में देखा है कि कोरोना के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत दिनों तक नहीं टिकती है, क्योंकि एंटीबॉडी समय के साथ कम होती जाती हैं। यह अध्ययन निम्न गुणवत्ता वाली प्रतिरक्षा प्रणाली वाले मैकेनिज्म को बताता है।’

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जर्मिनल सेंटर्स का आकलन किया। यह लिम्फ नोड्स और स्प्लीन के अंदर का क्षेत्र है, जहां पर बी कोशिकाएं ना केवल परिपक्व होती हैं बल्कि एंटीबॉडी का उत्पादन करना शुरू करती हैं। शोध के सह लेखक राबर्ट पैड्रा ने कहा कि जब उन्होंने कोरोना से जान गंवाने वालों के लिम्फ नोड्स और स्प्लीन को देखा तो उनमें जर्मिनल सेंटर्स की संरचनाएं नहीं बनी थीं।

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