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‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ को लेकर सेना, विपक्ष और आम लोगों का विरोध झेल पाएंगे इमरान खान!

पाकिस्तान में ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ यानी सीपीईसी (सीपीईसी) को लेकर विरोध के स्वर बढ़ते जा रहे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री इमरान खान हैं जो इसे ड्रीम प्रोजेक्ट का नाम दे रहे हैं तो दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना, विपक्ष और आम लोग इससे खुश नहीं हैं। सीपीईसी के नाम पर सैन्य मामलों में हस्तक्षेप हो रहा है। पाकिस्तान कर्ज में डूबने की कगार पर है। ‘चीन-पाकिस्तान रिलेशंस एंड द सीपीईसी, रिटर्निंग टू द शैडो’ पर आयोजित वेबिनार में एंड्रयू स्माल, प्रो. श्रीकांथ व डॉ. अबंती भट्टाचार्य ने कहा, सीईपीसी को लेकर इमरान खान पाकिस्तानी सेना, विपक्ष और आम लोगों का विरोध नहीं झेल नहीं पाएंगे।

वहां के लोग राजनीतिक सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा पर बात करना चाहते हैं, लेकिन इमरान खान उन्हें जबरन सीपीईसी के सपने दिखा रहे हैं। पाकिस्तान, कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस चुका है। इसी कमजोरी का फायदा चीन उठा रहा है। अब धीरे-धीरे लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि चीन, इस प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में जबरदस्त हस्तक्षेप कर रहा है। मंगलवार को विश्व मामलों की भारतीय परिषद के सभागार में आयोजित वेबिनार में सीनियर ट्रान्साटलांटिक फेलो, एंड्रयू स्माल ने कहा, पाकिस्तान जो सोच रहा है, वैसा कुछ नहीं है। सीपीईसी के जरिए पाकिस्तान सोचता है कि उसे बहुत भारी मदद मिल जाएगी, ये बहुत मुश्किल है। चीन बरगला रहा है। उसके सामने केवल अपने रणनीतिक हितों का साधने का लक्ष्य है। वह पाकिस्तान की गरीबी का फायदा उठाकर अपने मकसद को आगे बढ़ाने में लगा है। दोनों देशों के बीच जो संबंध हैं, उन्हें थकी हुई और कमजोर रिलेशनशिप कहा जाता है। कोविड के चलते सीपीईसी पर विपरीत असर पड़ने के आसार हैं।

जेएनयू में ईस्ट एशियन स्टडीज एसआईएस के प्रो. श्रीकांथ ने कहा, चीन का ग्रोथ रेट अब कमजोर पड़ रहा है। विदेशी निवेश में कमी के चलते बीआरआई प्रोजेक्ट के करीब बीस फीसदी बजट को नीचे लाया गया है। सीपीईसी से जुड़े कार्यों में पारदर्शिता नहीं है। तथ्यों में विश्वसनीयता का अभाव है। पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ, अपनी आखिरी सीमा तक पहुंच गया है।

इमरान खान, पांच फीसदी ब्याज दर पर भी लोन लेने में लगे हैं। पाक सीनेट तक इसकी आलोचना कर चुकी है। चीन, अपनी सुविधा और रणनीतिक हितों के मुताबिक, सीपीईसी के रूट में बदलाव कर देता है। पिछले कुछ समय से इस प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे हैं। पाकिस्तानी सेना और चीनी कंपनियों के बीच विवाद बढ़ रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ईस्ट एशियन स्टडीज विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अबंती भट्टाचार्य ने कहा, एशिया में सीपीईसी एक बड़ी टेंशन बन सकता है। पाकिस्तान को आज राजनीतिक एवं खाद्य सुरक्षा की जरूरत है। कृषि सेक्टर पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कर्ज में डूब चुके पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट को 43 साल के लिए चीन को दे दिया। वह चीन के जाल में इतनी बुरी तरह फंस चुका है कि चाह कर भी उससे बाहर नहीं आ सकता।

एमपी आईडीएसए के सीनियर फेलो डा. अशोक कुमार बेहुरिया के मुताबिक, पाकिस्तान में बहुत से लोग इस कॉरिडोर को लेकर खुश नहीं हैं। विपक्ष भी इसके खिलाफ बोलता है। पाकिस्तान सरकार लगातार लोन के जाल में फंसती जा रही है। चीन इसका फायदा उठाकर अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने में लगा है। चीन, आने वाले समय में इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च नहीं करेगा। वह उद्योग, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में बड़ा निवेश कर रहा है। वह पाकिस्तान को एक झटके में 25 बिलियन डॉलर दे देता है, लेकिन अब उसके अपने प्रोजेक्ट पूरे नहीं हो पा रहे हैं। सीपीईसी के जरिए पाकिस्तान की सुरक्षा के सभी पिलर गिर चुके हैं। पाक सेना और वहां के ताकतवर लोगों द्वारा इस प्रोजेक्ट का विरोध किए जाने का मतलब, इमरान खान को समझना चाहिए। इस प्रोजेक्ट पर कभी भी पाकिस्तान की घरेलू सहमति नहीं रही।

सीपीईसी परियोजना भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों को बिगाड़कर अमेरिका के क्षेत्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचा रही है। करीब 60 अरब डॉलर के अनुमानित निवेश की बात कही गई है, लेकिन यहां का विकास उस हिसाब से होगा, इस बाबत शंका बनी रहेगी। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, ड्रैगन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है। यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन जैसे विवादित इलाकों से होकर गुजरता है। भारत इस प्रोजेक्ट का विरोध करता है। वजह, क्योंकि यह पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है। यह हाइवे और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट चीन के काशगर प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा।

पिछले दिनों सीपीईसी में भ्रष्टाचार के चलते पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों के चालीस अधिकारियों को निलंबित किया गया था। बलूचिस्तान सूबे में 20 अधिकारियों के खिलाफ वित्तीय भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गई है। इन सभी पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, परियोजना में गबन करने का आरोप है। सीपीईसी की सुरक्षा के लिए स्पेशल फोर्स का गठन किया गया है। इसमें करीब 13800 स्पेशल कमांडो शामिल किए गए हैं। हालांकि इतना कुछ होने पर भी इस परियोजना में लगे चीनी नागरिकों पर हमले बंद नहीं हो सके हैं।

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