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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: भाषाओं के संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयास जरूरी

– योगेश कुमार गोयल

मानव जीवन में भाषा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसी के माध्यम से दूरदराज के देशों तक भी संवाद स्थापित किया जा सकता है। भाषा के महत्व को देखते हुए वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति व बौद्धिक विरासत की रक्षा करने, भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार करने और दुनियाभर की विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा उनके संरक्षण के लिए यूनेस्को हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाता है।

दरअसल भाषा और बहुभाषावाद से समावेशी विकास और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान हो सकता है। मातृभाषा की मदद से न केवल क्षेत्रीय भाषाओं के बारे में जानने-समझने में सहायता मिलती है बल्कि एक-दूसरे से बातचीत करना भी आसान हो जाता है। यही वजह है कि भाषा की विविधता को विस्तार से जानने के लिए कई देशों ने इस विषय पर मिलकर काम करने का निर्णय लिया है, जिसके तहत एक क्षेत्र का व्यक्ति किसी दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति की मातृभाषा को न केवल जान पाएगा बल्कि उसे सीख भी सकेगा।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विश्वभर में भाषा तथा संस्कृति से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और शिक्षा तथा साहित्य से जुड़े लोग विभिन्न भाषाओं को लेकर चर्चा करने के साथ-साथ किसी भी भाषा को सरल व सुगम बनाने के लिए परामर्श भी देते हैं। इस महत्वपूर्ण दिवस के लिए यूनेस्को द्वारा प्रतिवर्ष एक थीम निर्धारित की जाती है। वर्ष 2022 के अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम है ‘बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर’ जबकि 2021 के मातृभाषा दिवस की थीम थी ‘शिक्षा और समाज में समावेशन के लिए बहुभाषावाद को प्रोत्साहन’। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया था। वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के बीच की अवधि को संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया है।

यूनेस्को द्वारा मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवम्बर 1999 को की गई थी और पहली बार वर्ष 2000 में इस दिन को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था। सही मायनों में इस दिवस को मनाए जाने की शुरूआत अपनी मातृभाषा के लिए बांग्ला भाषा बोलने वालों के प्यार के कारण ही हुई थी। 21 फरवरी को ही यह दिवस मनाए जाने का सुझाव कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा दिया गया था, जिन्होंने बांग्ला भाषा आन्दोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुई नृशंस हत्याओं को स्मरण करने के लिए यह दिन प्रस्तावित किया था। दरअसल ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी 1952 को एक बड़ा आन्दोलन किया गया था और तत्कालीन पाकिस्तान सरकार द्वारा उस आन्दोलन को कुचलने के लिए प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा दी गई थी, जिससे आन्दोलन भयानक नरसंहार में तब्दील हो गया था, जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई थी। भाषा के इस बड़े आन्दोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को द्वारा वर्ष 1999 में निर्णय लिया गया कि प्रतिवर्ष 21 फरवरी को दुनियाभर में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में बोली जाने वाली करीब 6900 भाषाएं हैं और इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि दुनियाभर में बोली जाने वाली इन 6900 भाषाओं में से करीब 43 फीसदी भाषाएं लुप्तप्राय हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है और इस प्रकार दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक एवं बौद्धिक विरासत खो देती है। आज विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में अंग्रेजी, जापानी, स्पैनिश, हिन्दी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी इत्यादि शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह मिली है और वैश्विक आबादी के करीब चालीस फीसदी लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की, जिसे वे बोलते अथवा समझते हैं। डिजिटल दुनिया में तो वैश्विक स्तर पर सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है। वैश्वीकरण के इस दौर में बेहतर रोजगार के अवसरों के लिए विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण माना जाता है। हालांकि आज भारत सहित कई बड़े देशों में भाषा को सरल एवं सुगम बनाने के लिए कई प्रकार की योजनाएं तैयार की जा रही हैं और छात्रों को विभिन्न भाषाओं की जानकारी मिल सके, इस उद्देश्य से कई विश्वविद्यालयों में भाषा को लेकर नए कोर्स भी तैयार किए जा रहे हैं लेकिन भाषाओं के संरक्षण के लिए गंभीर वैश्विक प्रयासों की सख्त दरकार है।

यदि भारत में बोली जाने वाली भाषाओं पर नजर डालें तो हमारे यहां करीब 29 भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वालों की संख्या 10 लाख से भी ज्यादा है और 7 ऐसी भाषाएं हैं, जिनको बोलने वालों की संख्या एक लाख से ज्यादा है लेकिन 122 ऐसी भाषाएं भी हैं, जिन्हें 10 हजार से ज्यादा लोग बोलते हैं। वर्ष 1961 की जनगणना के मुताबिक यहां 1652 भाषाएं बोली जाती थी, जिनमें 42.2 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिन्दी थी। भारत में अब 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएं, 1635 मातृभाषाएं तथा 234 पहचान योग्य मातृभाषाएं हैं। आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाओं में हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, मराठी, गुजराती, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, उडि़या, सिंधी, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली, डोगरी शामिल हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) सभी नागरिकों को अपनी भाषा के संरक्षण का अधिकार देता है तथा भाषा के आधार पर भेदभाव को रोकता है। इसी प्रकार अनुच्छेद 120 (संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा) के अनुसार संसद की कार्यवाहियों के लिए हिन्दी अथवा अंग्रेजी का उपयोग किया जा सकता है लेकिन इसके तहत संसद सदस्यों को अपनी मातृभाषा में स्वयं को व्यक्त करने का भी अधिकार है। लुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिए भारत में ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण’ योजना भी चलाई जा रही है। यूजीसी देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने तथा ‘लुप्तप्राय भाषाओं के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में केन्द्र की स्थापना’ योजना के तहत कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को सहयोग करता है।

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषाओं के विकास पर काफी ध्यान दिया गया है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि जहां तक संभव हो, कम से कम पांचवीं कक्षा तक तो शिक्षा का माध्यम मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा ही होना चाहिए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार भी शिक्षा का माध्यम, जहां तक व्यावहारिक हो, बच्चे की मातृभाषा ही होनी चाहिए। दरअसल प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने से यह छात्रों को उनकी पसंद के विषय तथा भाषा को सशक्त बनाने में मददगार साबित होगा और यह भारत में बहुभाषी समाज के निर्माण, नई भाषाओं को सीखने की क्षमता इत्यादि में भी मदद करेगा। प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा के लिए संविधान के अनुच्छेद 350ए में स्पष्ट है कि देश के प्रत्येक राज्य और स्थानीय प्राधिकारी का प्रयास होगा कि वह भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करें। बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने का मूल उद्देश्य यही है कि दुनियाभर न सिर्फ विश्व की सभी भाषाओं का सम्मान हो बल्कि लुप्त होती मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास भी किए जाएं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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