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जानिए टीबी से जुड़े वो 4 मिथक जिसके बारे में हर किसी को पता होना चाहिए

नई दिल्ली: टीबी (TB) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया से होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. वैसे तो ये शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा टीबी के मामले फेफड़ों के होते हैं. फेफड़े की टीबी संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वाली बारीक बूंदों से फैलती है. इस बीमारी को घातक इसलिए माना जाता है ​क्योंकि ये शरीर के जिस हिस्से में होती है, उसको बर्बाद कर देती है, इसलिए टीबी का समय पर सही इलाज होना बहुत जरूरी है. डब्ल्यूएचओ (WHO) की मानें तो टीबी अभी भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक किलर डिजीज में से एक है. हर दिन करीब 4100 लोग टीबी से अपनी जान गंवाते हैं और 28,000 लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं.

लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक करने और इस वैश्विक महामारी को रोकने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस (World TB Day) मनाया जाता है. कहा जाता है कि डॉ. रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च 1982 को टीबी के बैक्टीरिया की खोज की थी, इस कारण हर साल 24 मार्च के दिन ही वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है. हर साल इसकी थीम भी बदलती है. साल 2022 में विश्व तपेदिक दिवस की थीम ‘इनवेस्ट टू एंड टीबी सेव लाइव्स’ (Invest to End TB. Save Lives) है. आज विश्व टीबी दिवस पर जानिए इस घातक बीमारी से जुड़े उन मिथक के बारे में जो अक्सर लोगों को भ्रमित करते हैं.


पहला मिथक
लोगों को लगता है कि टीबी की बीमारी केवल फेफड़ों को ही प्रभावित करती है, लेकिन ये पूरा सच नहीं है. दुनिया में करीब 70 फीसदी फेफड़ों की टीबी के मरीज सामने आते हैं, लेकिन ये बीमारी खून के जरिए आपके अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है. जब ये फेफड़ों को प्रभावित करती है, तो इसे पल्मोनरी टीबी कहा जाता है और अन्य अंगों को प्रभावित करने पर इसे एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है.

दूसरा मिथक
दूसरा मिथक है कि टीबी हमेशा संक्रामक होती है. नहीं, हर टीबी संक्रामक नहीं होती है. सिर्फ फेफड़े की टीबी यानी पल्मोनरी टीबी संक्रामक होती है. इसके बैक्टीरिया संक्रमित मरीज के खांसने या छींकने से हवा के जरिए दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. लेकिन एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी, जो शरीर के अन्य हिस्से को प्रभावित करती है, वो संक्रामक नहीं होती है.

तीसरा मिथक
अक्सर लोग मानते हैं कि टीबी होने पर मृत्यु हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. आज के समय में टीबी का सफल इलाज मौजूद है. बस समय रहते इस बीमारी को पकड़ने की जरूरत है. एक बार रोग की पुष्टि हो जाने के बाद विशेषज्ञ इस बीमारी को ठीक करने के लिए छह से नौ महीने का इलाज करते हैं. गंभीर स्थिति में ये इलाज 18 से 24 महीने भी चल सकता है. अगर समय रहते इसका इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है.

चौथा मिथक
लोग सिर्फ लंबे समय तक आने वाली खांसी को ही इसका प्रमुख लक्षण मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. लंबे समय तक खांसी आना इसका प्रारंभिक लक्षण है. इसके अलावा खांसी में बलगम या खून, भूख न लगना, वजन कम होना, सीने में दर्द, हल्का बुखार, रात में पसीना आना भी इसके लक्षण हैं. वहीं एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी होने पर प्रभावित हिस्से में तेज दर्द, सूजन या उससे जुड़ी अन्य समस्याएं हो सकती हैं.

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