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राजस्थान में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए आसान नहीं, भाजपा का मत प्रतिशत बड़ी चुनौती

नई दिल्ली (New Delhi) । राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Legislative Assembly) के साथ कांग्रेस (Congress) की नजर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) पर है। यही वजह है कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए पर्यवेक्षक (Observer) नियुक्त करने के साथ लोकसभा चुनाव के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं, पर कांग्रेस के लिए लड़ाई आसान नहीं है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में वह अपना खाता तक नहीं खोल पाई। आगामी लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए पार्टी को मत प्रतिशत बढ़ाना होगा।

राजस्थान में लोकसभा की 25 सीट हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सरकार बनाने के बावजूद कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रही। इससे पहले 2014 में भी पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी। वहीं राजस्थान में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल करने में सफल रही। जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत करीब 35 फीसदी के आसपास रहा। वर्ष 2009 के चुनाव में पार्टी ने 47 फीसदी वोट के साथ 20 सीट पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में कांग्रेस के सामने जीत के लिए अपने वोट प्रतिशत में वृद्धि की चुनौती है।


प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोकसभा के पिछले दो चुनावों में परिस्थितियां अलग थीं। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी को जनसमर्थन हासिल था, वहीं 2019 चुनाव में पुलवामा के बाद स्थितियां बदल गईं थीं, पर इस वक्त हालात अलग हैं। महंगाई और बेरोजगारी से लोग परेशान हैं। ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि 2024 चुनाव में उसके प्रदर्शन में काफी सुधार आएगा।

यह सही है कि पिछले दो चुनावों पर विधानसभा चुनाव में हार-जीत का कोई असर नहीं पड़ा था। पर वर्ष 2009 और 2004 के चुनाव में विधानसभा चुनाव का असर साफ दिखता है। वर्ष 2003 में वसुंधराराजे सिंधिया ने जीत दर्ज की और वर्ष 2004 चुनाव में भाजपा को 21 सीट मिली। इसी तरह 2008 में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने और 2009 में कांग्रेस 20 सीट जीतने में सफल रही।

कांग्रेस रणनीतिकार मानते हैं कि इस बार स्थितियां बिल्कुल अलग हैं। इस बार राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का रिवाज बदल सकता है। क्योंकि,मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ लोगों में कोई नाराजगी नहीं है। आम जनता सरकार की नीतियों को पसंद कर रही है। गहलोत और सचिन पायलट एकजुट हैं और दोनों मिलकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच रहे हैं। इस सबके बावजूद पार्टी मानती है कि राह आसान नहीं है।

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