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अनुवांशिक बीमारियों की दवाएं देश में नहीं बनतीं, लेकिन अब होगा शोध

नई दिल्ली। किसी भी माता-पिता के लिए यह चिंता की बात होगी कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी (generation by generation) चलने वाली बीमारी का शिकार उसके बच्चे भी हो सकते हैं। यहां तक कि आज के समय डायबिटीज, मोटापा, हाई बीपी, थॉयरॉइड (Diabetes, Obesity, High BP, Thyroid) जैसी बीमारियां तो आम हो गई हैं।

भारत जैसे देश में आठ करोड़ से ज्यादा दुर्लभ बीमारियों (rare diseases) से ग्रस्त मरीजों को राहत देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार दुर्लभ अनुवांशिक रोग पर शोध-अनुसंधान शुरू करने जा रही है। इसके तहत विज्ञान मंत्रालय ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसमें सरकारी और निजी दोनों ही तरह के अनुसंधान केंद्रों को अवसर दिया गया है।

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति 2021 को मंजूरी दी, जिसमें आरोग्य निधि योजना के तहत दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए सरकार 20 लाख तक की वित्तीय सहायता देगी। अब इस राशि को बढ़ाकर 50 लाख रुपये तक किया जा रहा है।



विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने प्रस्ताव में कहा है, देश में आठ करोड़ से ज्यादा लोग दुर्लभ आनुवांशिक रोग से पीड़ित हैं। यह यह वैश्विक बोझ का लगभग पांचवां हिस्सा है। इनके उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाएं विदेशी फार्मा कंपनियों द्वारा तैयार की जा रही हैं जबकि घरेलू तौर पर देश में इसका उत्पादन नहीं हो रहा है।

अधिकांश दुर्लभ बीमारियां जन्म के समय होती हैं। इसके लिए आवर्ती आनुवंशिक दोषों को कारण माना जाता है, हालांकि इनके अलावा भी कई दुर्लभ बीमारियां हैं, जिनका उपचार काफी महंगा है। मंत्रालय अधिकारी ने कहा, ऐसे में शोध अध्ययन को बढ़ावा देकर भविष्य की नई नीतियों को तैयार किया जाए।

इस नई तकनीक से होगा अनुवांशिक बीमारियों का सफल इलाज

अनुवांशिक बीमारियां जैसे सिकल सेल एनीमिया का अब इलाज किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार की जेनेटिक एडिटिंग प्रक्रिया विकसित की है जिससे 89 फीसदी अनुवांशिक बीमारियों का इलाज किया जा सकेगा। मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने कहा कि उनके द्वारा विकसित तकनीक क्रिसपीआर जीन एडिटिंग तकनीक से बेहतर है।

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