लखनऊ। निरस्त हो चुके तीन केंद्रीय कृषि कानूनों (three central agricultural laws) को लेकर एक बार फिर राजनीति तेज (politics intensifies again) हो गई है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की ओर से नियुक्त समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद किसान नेता राकेश टिकैत (Farmer leader Rakesh Tikait) ने एक बार फिर बड़े किसान आंदोलन की धमकी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति कृषि कानूनों को निरस्त करने के पक्ष में नहीं थी। ऐसे में किसान नेताओं को एक बार फिर कृषि कानूनों को वापस लाए जाने की आशंका है।
भारतीय किसान यूनियन (Indian Farmer’s Union) के नेता राकेश टिकैत ने मंगलवार को ट्वीट किया, ”तीन कृषि कानूनों के समर्थन में घनवट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट सार्वजनिक कर साबित कर दिया कि वे केंद्र सरकार की ही कठपुतली थे। इसकी आड़ में इन बिलों को फिर से लाने की केंद्र की मंशा है तो देश में और बड़ा किसान आंदोलन खड़े होते देर नहीं लगेगी।”
समिति ने इस रिपोर्ट को पिछले साल 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की समिति के सदस्य और किसान नेता अनिल घनवट ने इसे सार्वजनिक किया है। घनवट ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
तीन कृषि कानूनों के समर्थन में घनवट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट सार्वजनिक कर साबित कर दिया कि वे केंद्र सरकार की ही कठपुतली थे। इसकी आड़ में इन बिलों को फिर से लाने की केंद्र की मंशा है तो देश में और बड़ा किसान आंदोलन खड़े होते देर नहीं लगेगी।
कृषि कानूनों के पक्ष में थे अधिकतर किसान
घनवट ने कहा है कि महज 13.3 फीसदी किसान कृषि कानूनों के पक्ष में नहीं थे। 3.3 करोड़ से अधिक किसानों के का प्रतिनिधित्व करने वाले करीब 85.7 फीसदी किसान संगठनों ने कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताया था। घनवट ने कहा कि समिति ने सिपारिश की थी कि किसानों को सरकारी मंडियों के अलावा निजी संस्थाओं को उत्पाद बेचने की अनुमति दी जाए। राज्यों को एमएसपी कानून बनाने की आजादी दी जाए।