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Sawan 2022 : शिव परिवार में समाहित हैं नवग्रह, ऐसे करें भोलेशंकर की पूजा

नई दिल्‍ली । सावन मास (Sawan month ) का प्रारंभ श्रवण नक्षत्र से होता है इसीलिए इसे श्रावण मास कहा जाता है. कहा जाता है कि यह महीना तो भोले शंकर के नाम है. शिव जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनको 12 महीनों में से पूरा एक महीना समर्पित है. एक बात और है कि सूर्य के दक्षिणायन (Dakshinayana) होने के साथ ही शिव भक्ति प्रारंभ हो जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार सावन मास में समुद्र मंथन (ocean churning) किया गया और मंथन से निकले विष का पान महादेव ने किया था. विष की गर्मी को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने महादेव का जलाभिषेक(Jalabhishek) किया, तभी से इस महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व (special importance) है. शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो वैरागी, अघोरी होने के साथ ही गृहस्थ भी हैं.

भगवान शिव का पूरा परिवार समरसता पूर्ण है, इनके परिवार में विरोधी तत्व भी प्रेम के साथ रहते हैं. जैसे श्री गणपति महाराज का चूहा और महादेव (Shiva) का भुजंग, जहां भुजंग वहीं कार्तिकेय का मोर, जहां पर शिव जी के वृष यानी बैल तो वहीं माता पार्वती के सिंह जो सभी एक दूसरे का भक्षण करने वाले हैं किंतु शिव परिवार में आते ही एक दूसरे का रक्षण करते हैं. महादेव के इस परिवार से इस श्रावण माह में हम लोग भी संकल्प ले सकते हैं कि परिवार में विरोधी स्वभाव के सदस्यों के बाद भी एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहेंगे और साथ मिल कर शिव जी की उपासना करेंगे.



शिव परिवार में ही है सभी ग्रहों का वास
शिव परिवार की दूसरी विशेषता है कि यहां पर सभी ग्रह शामिल हैं. ग्रहों के राजा सूर्य स्वयं महादेव हैं. चंद्रमा उनके शीश पर विराजित हैं, कार्तिकेय स्वयं मंगल हैं और बुध राजकुमार गणेश हैं.गुरु के रूप में नंदी हैं तो शुक्र माता पार्वती हैं. न्याय के देवता शनिदेव शिव जी (Shani Dev Shiva) का त्रिशूल हैं जिससे वह दंड देते हैं.राहू सर्प का मुख हैं और केतु सर्प की पूंछ जो कि शिव का आभूषण हैं. इसीलिए रुद्र का अभिषेक यानी रुद्राभिषेक सर्व फलदायी होता है. इसको करने से समस्त ग्रह शांत एवं प्रसन्न हो जाते हैं. साथ ही पारिवारिक समरसता का प्रतीक होने के कारण ही इस अभिषेक को पूरा परिवार एकता के सूत्र में बांधता है.

इस परिवार में समाविष्ट हैं पंच तत्व
जब नवग्रह शिव परिवार में आ गए तो यहां सभी तत्वों का भी समावेश हो जाता है. जैसे गंगा और चंद्र जिस स्थान पर हैं वह जल तत्व है.त्रिशूल और डमरू का संबंध वायु तत्व से है क्योंकि डमरू ध्वनि देता है और ध्वनि वायु तत्व है, इसके साथ ही त्रिशूल भी संधान के बाद वायु तत्व में ही अपना लक्ष्य साधते हैं. मंगल का प्रतिनिधित्व करने वाले बलवान भगवान श्री कार्तिकेय जी अग्नि तत्व हैं. नंदी यानी वृष पृथ्वी तत्व हैं. महाकाल यानी महादेव स्वयं में आकाश तत्व हैं जो सभी तत्वों को समेटे हुए हैं.

काल को भी टालने वाले महाकाल ही हैं, तुलसी बाबा ने कहा है कि जो – तप करे कुमारी तुम्हारी, भावी मेटी सकही त्रिपुरारी … यानी विधि के विधान को यदि बदलने की कोई दम रखता है तो वह महादेव ही हैं. तभी तो मार्कंडेय ऋषि ने जनमानस को प्राणों की रक्षा के लिए शिव जी की उपासना का महा मृत्युंजय महामंत्र दिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)

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