ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे


संजय शुक्ला अधबीच में रह गए
निगम चुनाव होंगे या बढ़़ेंगे, इसको लेकर अब कोर्ट से फैसला आना बाकी है, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान में जो है वो हैं विधायक संजय शुक्ला (Sanjay Shukla)। कांग्रेस (Congress) ने भी उनके माथे महापौर प्रत्याशी (Mayor candidate) का सेहरा बांधकर उनकी जेब ढीली करवाने में कसर नहीं छोड़ी। वार्ड स्तर पर सम्मेलन हो गए और उसमें भोजन-भंडारे भी होते रहे। इस बहाने वार्ड के उन नेताओं की भी चल निकली जो पार्षदी की दावेदारी कर रहे थे। वैसे शुक्ला बिजनेस माइंड के साथ-साथ राजनीति के चतुर खिलाड़ी भी हैं और उन्होंने हवा का रुख भांपते ही अपनी जेब को टाइट कर दिया है। इधर वार्ड स्तर पर होने वाले सम्मेलन लगभग थम से गए हैं। शुक्ला को भी समझ आ गया कि अगर चुनाव आगे बढ़ जाते हैं तो अब जो खर्चा होना है वो पानी में ही जाना है। फिर भी शुक्ला आयोजनों में जा रहे हैं और बता रहे हैं कि वे सक्रिय हैं। वैसे अब शुक्ला को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है और तब तक तो महापौर प्रत्याशी का सेहरा उतारकर घर नहीं रखा जा सकता?


कब बनेगा मीडिया का आधुनिक रूम
पिछले दो महीने से दीनदयाल भवन ( Deendayal Bhavan) के मीडिया सेंटर को बंद कर दिया गया है। नगर संगठन का कहना है कि इसे आधुनिक बनाया जा रहा है। फिलहाल तो इस सेंटर पर ग्रामीण भाजपा नेताओं ने कब्जा जमा लिया , क्योंकि जिलाध्यक्ष सोनकर नया ऑफिस बनवा रहे हैं। वैसे मीडिया सेंटर बंद करने की कहानी दूसरी है, जिसके पीछे जाएं तो एक बड़े नेता की नाराजगी इसका कारण मानी जा रही है, जिनके नाम को लेकर नगर के एक पदाधिकारी ने कटाक्ष किया था।
फूट पड़ा महिला आयोग की अध्यक्ष का दर्द
महिला कांग्रेस (Congress) की अध्यक्ष रहीं शोभा ओझा को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने महिला आयोग का अध्यक्ष बना दिया था, लेकिन उनकी बदकिस्मती रही कि सरकार जाती रही। चूंकि अध्यक्ष का पद संवैधानिक होता है और कार्यकाल पूरा हुए बिना उन्हें हटाया नहीं जा सकता। वैसे ओझा इंदौर में अब कम ही सक्रिय हैं। कल वे खंडवा में थीं और मीडिया के सामने उनका दर्द फूट पड़ा कि सरकार महिला आयोग को कोई तवज्जो नहीं दे रही है, इसलिए आयोग अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है।


बबलू को फिर पड़ी जिराती के सहारे की जरूरत
पिछले दिनों राऊ विधानसभा में सेन समाज के कार्यक्रम में आए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) के स्वागत में राऊ विधानसभा में रहने वाले नगर पदाधिकारी अभिषेक बबलू शर्मा ने बड़ी संख्या में पोस्टर और होर्डिंग्स के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन किया। शक्ति प्रदर्शन तो ठीक था, लेकिन इसमें जीतू जिराती (Jeetu Jirati) का फोटो होना बता गया कि बबलू अब जिराती के पाले में आ रहे हैं। हालांकि बबलू पहले जिराती खेमे के साथ ही थे। गोपी नेमा के अध्यक्षीय कार्यकाल में उन्होंने उस्ताद का पीछा भी नहीं छोड़ा, लेकिन अब टिकट के लिए जिराती के सहारे की जरूरत आन पड़ी है। वैसे मोघे के यहां भी वे बराबर हाजिरी भर रहे हैं, क्योंकि जब टिकट का बंटवारा हो तो मोघे के साथ-साथ जिराती की भी जरूरत पड़ेगी।
खराब हो गया मंत्रीजी का पायलट वाहन
शनिवार को मंत्री सिलावट भाजपा कार्यालय पहुंचे। कोई पदाधिकारी तो नहीं मिला, लेकिन कार्यकर्ताओं के साथ बैठे और चाय के साथ गप्पे मारे। संगठन मंत्री से मुलाकात करने के बाद वे जब वापस जाने के लिए निकले तो उनका पायलट वाहन खराब हो गया। मंत्रीजी ने इंतजार किया, लेकिन गाड़ी चालू नहीं हुई। मंत्रीजी पायलट वाहन और सुरक्षाकर्मियों को छोड़ आगे के लिए रवाना हो गए। बाद में मालूम पड़ा कि पायलट वाहन की बैटरी डाउन हो गई थी। बाद में बैटरी की व्यवस्था हुई और पायलट वाहन मंत्रीजी के पीछे दौड़ पड़ा।


सज्जन के सज्जन बयान ने चौंकाया
भाजपा और उसकी सरकार को लेकर हमेशा आक्रामक रहने वाले पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा (Sajjan Singh Verma) घेराबंदी का कोई मौका नहीं छोड़ते। उन्हें कोरोना वैक्सीन क्या लगी, उनके सुर ही बदल गए। उन्होंने न केवल वैक्सीन की तारीफ की, बल्कि यह भी कहा कि हर व्यक्ति को इसे लगवाना चाहिए, जबकि कांग्रेस (Congress) के ही कई बड़े नेता वैक्सीन को लेकर सवाल खड़ा कर चुके हैं। सज्जन के भाजपा सरकार के खिलाफ बदले सुर क्या इशारा कर रहे हैं या इसमें भी कोई राजनीति है ये तो खुद वे ही बता सकते हैं।
वीडी को वाघेला के यहां जाने से किसने रोका
संगठन के लिहाज से अनुभवी नेता माने जाने वाले भाजपा के नगर उपाध्यक्ष कमल वाघेला की माताजी का पिछले दिनों निधन हो गया था। बैठक लेने शहर आए वीडी शर्मा (VD Sharma) को जानकारी मिली तो उन्होंने वाघेला का पता-ठिकाना पूछा और वाघेला तक खबर पहुंची कि वीडी भाईसाब आ रहे हैं। इंतजार किया गया और रात के साढ़े 10 बजे गए। मालूम पड़ा कि वीडी भाईसाब तो वापस ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर पहुंच चुके हैं। बोला जा रहा कि वाघेला का राजनीतिक कद ऊंचा न हो पाए, इसलिए एक नेता ने यह कहकर काफिला मुड़वा दिया कि रात में उनके यहां शोक प्रकट करने जाएंगे तो ठीक नहीं होगा। वाघेला और उनके साथी तक उक्त नेता का नाम भी पहुंच गया है, लेकिन नाम बड़ा होने के कारण कुछ कह नहीं सकते।


1 नंबर विधानसभा के एक वार्ड में वर्चस्व की लड़ाई का मामला गरम होते ही ठंडा हो गया। बीच-बचाव में बड़े नेता कूदे और दोनों के बीच समझौता करवा दिया। खैर, इसमें समझौता होना ही था, क्योंकि इस लड़ाई में दोनों का नुकसान होता और तीसरा मलाई खा जाता। लड़ाई चुनाव की जो थी। -संजीव मालवीय

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