मनोरंजन

कल यूट्यूब चैनल नवरंगी पर लॉन्च होगा

बीबीसी मीडिया (bbc media) एक्शन ने कल यूट्यूब पर लाइफ नवरंगी लॉन्च की – एक सात-एपिसोड का वेब ड्रामा, जो मल अपशिष्ट प्रबंधन (FSM) पर आधारित है। लाइफ नवरंगी, नवरंगी सीरीज़ का दूसरा श्रृंखला है, जो छब्बीस-एपिसोड के सफल टेलीविज़न ड्रामा नवरंगी रे!‘ (नाइन टू ए शेड) का अनुवर्ती है, जिसे 2019 में अपने तीन चैनलों और ओटीटी प्लेटफार्मों (OTT Platforms) पर वायकॉम18 द्वारा प्रसारित किया गया था। दोनों श्रृंखलाओं को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा समर्थित किया गया है।

 

 विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, भारत के शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 120,000 टन मल अपशिष्ट1 (साइट पर स्वच्छता प्रणालियों में उत्पन्न शौचालय अपशिष्ट) का उत्पादन होता है। अनुमानों के अनुसार आज भारत की शहरी आबादी का लगभग 60 प्रतिशत ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों पर निर्भर है, जिसके लिए एफएसएम की एक समर्पित योजना की आवश्यकता होती है। शौचालय से उत्पन्न इस अपशिष्ट को यदि बिना ट्रीटमेंट के छोड़ दिया जाए तो इसके परिणाम स्वरूप गंभीर स्वास्थ्य के जोखिम हो सकते हैं। भारत ने शौचालयों के निर्माण और उपयोग में काफी प्रगति की है। लेकिन, मार्च 2021 में प्रकाशित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की राष्ट्रीय सूची के अनुसार, शहरी भारत हर दिन उत्पन्न होने वाले 72,368 मिलियन लीटर सीवेज में से केवल 37 प्रतिशत अपशिष्ट का ही ट्रीटमेंट करता है जिसमें से लगभग दो-तिहाई अपशिष्ट जल, पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है2। यह अपशिष्ट जल जिसका अभी तक ट्रीटमेंट नहीं किया गया है खुले में पड़ा रहता है, और पेय जल को दूषित कर सकता है जिससे निवासियों को पेयजल आपूर्ति प्रदान करने के लिए शहरों पर बोझ बढ़ता है, साथ ही शहर के निवासियों के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो जाता है।

लाइफ नवरंगी प्रासंगिक और दिलचस्प मुद्दों पर दृष्टिकोण रखता है – अपने सपनों का घर खरीदने के बारे में योजनाएं और कठिनाइयाँ, किसी पेशे में अपनी पहचान बनाना, कर्ज से निपटना और शादी टूटने का खतरा। इसकी कहानी एफएसएम के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करती है जैसे कि नियमित रूप डिस्लज करना (सेप्टिक टैंकों से अपशिष्ट हटाना), बिना ट्रीट किए हुए अपशिष्ट के अंधाधुंध डंपिंग को रोकने की आवश्यकता जो पानी को दूषित करती है, कोनों को काटे बिना सही प्रकार के सेप्टिक टैंक का निर्माण और सफाई के ऐसे तरीके को रोकना जिसमें जान का खतरा हो। इस श्रृंखला का उद्देश्य एफएसएम के संबंध में नागरिक जुड़ाव को बढ़ाना है, जिसमें मजबूत महिला पात्रों का निर्माण होता है और जो सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विभाजन को ख़त्म करता है। मल अपशिष्ट प्रबंधन के दौरान कई पात्रों की अपनी विभिन्न दुविधाएं और प्राथमिकताएं हैं, जो कहानी में कई ट्विस्ट और टर्न लाते हुए कहानी को बेहद रोचक बनाती हैं। लैंगिक असमानता अब एक पुराने समय की बात हो चुकी है, महिलाएं अब लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ रही है तथा अपने लिए गैर पारंपरिक करियर विकल्पों की खोज कर रही हैं; इस श्रृंखला की कहानी यह भी बताती है कि गलत जानकारी, दुष्प्रचार या किसी जानकारी को तोड़-मरोड़ कर पेश करना भी हानिकारक हो सकता है।


अर्चना व्यास, डिप्टी डायरेक्टर, पॉलिसी एडवोकेसी कम्युनिकेशंस, एंड बिहेवियरल इनसाइट्स, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन इंडिया ने कहा, “मल अपशिष्ट प्रबंधन का लोगों के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर होने वाले इसके प्रभाव के विषय में लोगों में जागरूकता का अभाव है और यही कारण है कि मल अपशिष्ट प्रबंधन की मांग बहुत सीमित है। जागरूकता के अभाव में घरेलू स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी हुई उचित नियंत्रण प्रणाली बनाने की जिम्मेदारी से ज्यादातर लोग बचते हैं। लाइफ नवरंगी के माध्यम से, हमारा अंतिम लक्ष्य शिक्षा के माध्यम से कहानी की शक्ति का उपयोग करते हुए, और डिजिटल मीडिया की पहुंच और लक्ष्यीकरण का लाभ उठाते हुए सुरक्षित स्वच्छता व्यवहार की दिशा में कार्रवाई करना है। गेट्स फाउंडेशन में, हम सुरक्षित और टिकाऊ स्वच्छता की दिशा में भारत की यात्रा में समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और हम उपभोक्ता मांग को आकार देने और स्वस्थ भविष्य की दिशा में सामाजिक प्रभाव बनाने के लिए बीबीसी मीडिया एक्शन के साथ इस साझेदारी को लेकर उत्साहित हैं।”

 

बीबीसी मीडिया एक्शन की ग्लोबल क्रिएटिव एडवाइज़र राधारानी मित्रा ने कहा, ” हमने महसूस किया है कि जब मल अपशिष्ट प्रबंधन की बात आती है, तो इससे जुड़े हुए सामाजिक संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक कहानी की शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारा उद्देश्य, अदृश्य को दृश्यमान बनाने का है। यह कहानी मल अपशिष्ट प्रबंधन (एफएसएम) और पानी के दूषित होने के मुद्दे के जोखिम की धारणा को बढ़ाने के हमारे निरंतर प्रयास का परिणाम है।” उन्होंने आगे कहा, “यह श्रृंखला भारत के छोटे शहरों के रूढ़िवादी मूल्यों, अपनी सीमा से आगे बढ़कर धन और सफलता के सपने देखने और अपनी शर्तों पर जीने के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। कहानी में कथानक बिंदु मुख्य रूप से अपने सपनों के घर खरीदने, किसी पेशे में अपनी पहचान बनाने, ‘स्मार्ट होनेका सही अर्थ, कर्ज से निपटने और शादी टूटने के खतरे के बारे में हैं। हमारी कथा लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ती है और इसमें विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के पात्र शामिल हैं। सही एफएसएम सेवाएं जीने के अधिक संगठित तरीके, संसाधनों और संबंधों के प्रबंधन तथा अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक रूपक बन जाती हैं।”

 

प्रोफेसर श्रीनिवास चारी, प्रोफेसर और निदेशक, शहरी शासन और पर्यावरण, एडमिन स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया (एएससीआई), सीईओ-वाश इनोवेशन हब (डब्ल्यूआईएच) ने कहा कि, “एफएसएम न केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा हुआ मुद्दा है, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा भी है। एफएसएम की आवश्यकता को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और जल प्रदूषण पर काफी प्रभाव पड़ता है। नवरंगी रे! ने हमारी आँखें खोल दी हैं। इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने में मीडिया और कहानी की अपनी भूमिका है और हम नई और रोमांचक कहानी के साथ इस दूसरी श्रृंखला का स्वागत करते हैं।” 

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