इंदौर न्यूज़ (Indore News)

फिलहाल पुलिस कमिश्नरी को अधिक ताकतवर नहीं बनाया जाएगा

  • महकमा खुद भी जरूरत से ज्यादा अधिकार शुरुआत में लेने को तैयार नहीं, वरना प्रयोग के दौरान ही होने लगेगी आलोचना… लिहाजा कई अधिकार प्रशासन के पास ही रहेंगे

इंदौर। पुलिस मुख्यालय इंदौर-भोपाल (Police headquarters Indore-bhopal) में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम (police commissioner system) अब जल्द से जल्द लागू करने के लिए तैयार तो है, मगर वह जरूरत से ज्यादा अधिकार अभी नहीं लेगा, क्योंकि प्रयोग के रूप में कमिश्नरी सिस्टम (commissioner system) शुरू किया जा रहा है और अगर अधिक अधिकार ले लिए और उन मोर्चों पर पुलिस कमिश्नरी (police commissioner) सफल नहीं हुई तो तगड़ी आलोचना होने लगेगी, क्योंकि आईएएस लॉबी (IAS Lobby) तो इसके लिए तैयार ही नहीं है और वह भी गलती होने का इंतजार करेगी। यही कारण है कि अभी कानून व्यवस्था से जुड़े अधिकार ही कमिश्नरी सिस्टम को दिए जाएंगे। अन्य विभागों से संबंधित अधिकार अभी प्रशासन के पास ही यथावत रहेंगे। चर्चा है कि अगले एक महीने के भीतर कमिश्नरी सिस्टम लागू किया जा सकता है, जिसको लेकर भोपाल (Bhopal) में कवायद शुरू हो गई है। मुख्य सचिव, डीजीपी, अपर मुख्य सचिव (Chief Secretary, DGP, Additional Chief Secretary) सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की कल भी इस मामले को लेकर बैठक हुई।
बीते कई सालों से बड़े शहरों की तर्ज पर इंदौर, भोपाल जैसे प्रदेश के प्रमुख शहरों में भी पुलिस कमिश्नरी लागू करने की बात होती रही और दो बार मुख्यमंत्री (chief minister) ने भी घोषणा की, मगर आईएएस लॉबी के दबाव-प्रभाव के चलते इस पर अमल नहीं हो सका। हालांकि अधिकांश राजनेता भी यह मानते हैं कि पुलिस कमिश्नरी सिस्टम है तो अच्छा, मगर हमारे यहां की पुलिस (police) उसके लायक नहीं है, क्योंकि आए दिन पुलिस प्रताडऩा के तमाम किस्से सामने आते हैं। अभी दो दिन पहले ही यातायात के मामूली उल्लंघन के चलते ही बीच चौराहे पर ही एक पुलिस अधिकारी (police officer)  ने वाहन चालक को जूतों से मारा, जिसका वीडियो वायरल होने पर उसके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई भी की गई। यही कारण है कि पुलिस मुख्यालय खुद अभी जरूरत से ज्यादा अधिकार लेने में कम रुचि दिखा रही है। रासुका, जिलाबदर, धारा 144 से लेकर अन्य प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के अलावा कानून व्यवस्था से जुड़े मामलों में ही अभी अधिकार मांगे जा रहे हैं। इस संबंध में पीएचक्यू ने एक प्रस्ताव भी तैयार कर गृह विभाग (home minstry) को भेजा है और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा बैठकें भी हो रही है। एक महीने के भीतर इन प्रस्तावों को तैयार कर कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और वहां से मंजूरी के बाद संभवत: अध्यादेश के जरिए या फिर विधानसभा के शीतकालीन सत्र, जो कि 20 से 24 दिसम्बर तक आयोजित किए जाने की अधिसूचना जारी हो गई है में रखकर मंजूर कराया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि अभी नगर निगम से लेकर खाद्य, नागरिक आपूर्ति, आबकारी, खनन (Food, Civil Supplies, Excise, Mining) सहित अन्य मामलों में कार्रवाई के अधिकार पुलिस कमिश्नरी में नहीं दिए जाएंगे। वहीं आम्र्स लाइसेंस (arms license) जारी करने के अधिकार भी प्रशासन के पास ही रह सकते हैं। वैसे भी पुलिस कमिश्नरी सिस्टम शहरी क्षेत्र में ही लागू होगी और ग्रामीण क्षेत्र में तो वर्तमान व्यवस्था ही कायम रहेगी। वैसे भी जिन बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नरी लागू की गई है वहां अपराधों में अंकुश लग जाने के कोई प्रमाण नहीं आए। जिस मुंबई पुलिस का उदाहरण अच्छी पुलिसिंग और कमिश्नरी सिस्टम के लिए दिया जाता है वहां पर अंडरवल्र्ड से लेकर देश के सबसे बड़े अपराध होते हैं और नार्कोटिक्स एक्ट से लेकर तमाम धाराओं में प्रकरण दर्ज होने के अलावा अंडरवल्र्ड से वसूली सहित कई गंभीर आरोप भी पुलिस कमिश्नर तक लगते रहे हैं। मौजूदा दौर में परमवीर सिंह और पूर्व गृहमंत्री का चर्चित विवाद भी सुर्खियों में है और पूर्व कमिश्नर को फरार होकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार तक लगाना पड़ी है। वहीं उत्तरप्रदेश के जिस पुलिस कमिश्नरी सिस्टम की सराहना प्रधानमंत्री ने दी और जिसके आधार पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इंदौर-भोपाल में कमिश्नरी सिस्टम लागू करने की घोषणा की उसी उत्तरप्रदेश में पुलिस प्रताडऩा के कई हैरतअंगेज मामले सामने आ चुके हैं।


लखीमपुरखीरी (Lakhimpurkhiri) सहित कई मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट भी लगातार कड़ी फटकार लगाता रहा है। यही कारण है कि कई जानकार चैक एंड बैलेंस के लिए पुलिस कमिश्नरी सिस्टम की बजाय वर्तमान कलेक्टरी सिस्टम को ही अधिक कारगार मानते हैं।

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