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आसान नहीं डगरः AAP को तीसरी शक्ति बनने के लिए तय करना पड़ेगा लम्बा सफर

नई दिल्ली। दिल्ली निगम चुनावों (delhi corporation elections) में जीत और गुजरात (Gujarat) में खाता खोलने के बाद आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) देश की राजनीति में तेजी से बढ़ती दिख रही है। दो राज्यों में उसकी सरकार भी है। लेकिन इसके बावजूद देश की राजनीति में तीसरी शक्ति (third power in politics) बनने के लिए उसे लंबा सफर तय करना पड़ेगा।

दिल्ली के बाद इसी साल पंजाब (Punjab) में सरकार (Government) बनाने के साथ ही आप ने गोवा में दो सीटें (two seats in goa) भी हासिल की थीं। अब गुजरात में भी उसका खाता खुल चुका है। साफ है कि इससे उसका दायरा बढ़ा है और वह राष्ट्रीय दल का दर्जा भी आने वाले दिनों में हासिल कर सकती है। कुछ विश्लेषक उसे तेजी से विस्तार कर रही पार्टी के रूप में देख रहे हैं। अटकलें हैं कि आने वाले वक्त में वह भाजपा, कांग्रेस के बाद देश में तीसरी शक्ति के रूप में उभर सकते हैं। लेकिन विश्लेषक इसमें कई बुनियादी सवाल भी खड़े करते हैं।


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तीसरा विकल्प बनने के लिए बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि में दल को अपनी जमीन तैयार करनी होगी। दूसरे, उसके पास कुछ ऐसे टिकाऊ मुद्दे होने चाहिए जिन पर वह लगातार और लंबे समय तक जनता के बीच जा सके। आप के पास इसकी कमी स्पष्ट दिखती है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विभाग के प्रोफेसर और विपक्ष की राजनीति से जुड़े सुबोध मेहता कहते हैं कि आप का उदय अन्ना हजारे आंदोलन से हुआ। उसने दिल्ली में प्रवासियों की ज्वलंत समस्याओं के मुद्दे पर राजनीति की और सफल रही। लेकिन देश में आगे बढ़ने के लिए उसके पास उन मुद्दों की कमी है जो कभी जनता दल या वामपंथी दलों के पास हुआ करते थे। यहां तक कि बिहार में राजद, उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा ने भी ऐसे मुद्दों की राजनीति की जो लंबे समय तक टिकाऊ हैं। आप के पास भ्रष्टाचार एक मुद्दा था लेकिन निगम चुनाव से पूर्व देखा कि वह खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गई। पंजाब में भी उसे प्रवासियों के मुद्दों के समाधान का फायदा मिला।

आप का भविष्य :
राजनीति की जानकारी रखने वाले मानते हैं कि मौजूदा हालातों में आप के लिए किसी राज्य में लंबे समय तक टिके रहना कठिन होगा। सिर्फ बिजली-पानी मुफ्त देने के ऐलान से भले ही तात्कालिक सफलता मिले लेकिन हर राज्य में यह मुद्दा काम नहीं करेगा। उसे कुछ ऐसे मुद्दे उठाने होंगे जिन पर लंबे समय तक राजनीति हो सके। उसे बड़े राज्यों में खुद को मजबूत करना होगा। अन्यथा जिस प्रकार बसपा कुछ राज्यों में अपना छोटा-मोटा विस्तार करने के बाद वापस उत्तर प्रदेश तक ही सिकुड़ कर रह गई, वैसा ही आप के साथ भी हो सकता है। वह दिल्ली और पंजाब तक ही सीमित होकर रह सकती है।

कांग्रेस की मजबूती से नुकसान :
राजनीतिक जानकारों के अनुसार यदि आने वाले समय में कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस का पुनरुद्धार होता है यानी वह मजबूत होती है तो उससे आप को सीधे नुकसान होगा। जिन राज्यों में कांग्रेस कमजोर पड़ रही है, वहां आप के लिए खड़े होने की संभावनाएं बन सकती हैं। लेकिन जहां भाजपा के खिलाफ कांग्रेस या कोई दूसरा दल मजबूती से खड़ा है, वहां आप के लिए मुश्किल बनी रहेगी। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव इसके उदाहरण हैं।

यूपी, उत्तराखंड, गोवा समेत कई राज्यों में पहुंच :
उत्तराखंड में इसी साल हुए चुनावों में आप को 3.3 फीसदी मत मिले। हालांकि वह कोई सीट नहीं जीत पाई। गोवा में आप को पिछले और इस चुनाव में करीब छह फीसदी मत मिले। इस साल दो सीट भी जीती। इसके अलावा पार्टी ने हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, नगालैंड, ओडिशा, राजस्थान और यूपी के चुनावों में भी किस्मत आजमाई लेकिन उसे एक फीसदी से कम मत मिले।

ओवैसी की दस्तक :
तेलंगाना में पिछले चुनाव में 2.7 फीसदी वोट पाने वाली एआईएमआईएम के सात विधायक हैं। जबकि बिहार और महाराष्ट्र में करीब-करीब डेढ़-डेढ़ फीसदी मतों के साथ क्रमश पांच और दो सीटें जीतीं। झारखंड में 2019 में उसे 1.16 फीसदी से ज्यादा मत मिले लेकिन सीट नहीं मिल। यूपी, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में वह एक फीसदी से कम मत ला पाई।

मुस्लिम मतों के बंटने का खतरा :
पिछले कुछ चुनावों में जिस प्रकार तेजी से आप आगे बढ़ रही है, उसकी प्रकार असुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी आगे बढ़ रही है। पार्टी तेलंगाना के बाहर निकली है तथा महाराष्ट्र, बिहार में उसने सीटें भी जीती है। जबकि झारखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्यों में उसने चुनाव जीते हैं तथा मुस्लिम वोट हासिल किए हैं। ऐसे में मुस्लिम वोटों का विभाजन होने लगा है। ओवैसी ने उन दलों के लिए चुनौती पैदा की है जिन्हें मुस्लिम वोट मिलते थे। इनमें दिल्ली में आप, बिहार में राजद और कांग्रेस, महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी, झारखंड में कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में सपा या बसपा प्रमुख हैं।

दिल्ली में भाजपा के वोट पर चोट नहीं कर सकी आप:
आप ने 2013 में दिल्ली में पहला चुनाव लड़ा था और पहली बार उसे 29.5 फीसदी वोट मिले, 2015 में उसका मत प्रतिशत 54.3 तथा 2020 में 53.57 फीसदी रहा। इस अवधि में कांग्रेस का मत प्रतिशत जो 2008 में 40 फीसदी था। वह क्रमश घटकर 2020 में 4 फीसदी रह गया। भाजपा का मत प्रतिशत जो 2008 में 36 फीसदी था वह अब तक हुए सभी चुनावों में करीब-करीब वैसा ही बना रहा। बल्कि 2020 में वह बढ़कर 38 फीसदी हो गया। यह दर्शाता है कि आप ने कांग्रेस का वोट ही हथियाया। भाजपा के मतों को तोड़ने में वह विफल रही। निगम चुनावों में जीत के बावजूद आप का मत प्रतिशत करीब 12 फीसदी घटा है जबकि भाजपा का बढ़ा है।

पंजाब में भी अकाली और कांग्रेस दोनों का वोट ले गई आप:
पंजाब में आप ने 2017 में एंट्री की तब भाजपा-अकाली गठबंधन की सरकार थी। तब उसने अकालियों के वोट बैंक में सेंध लगाई। उसे 24 फीसदी वोट मिले जिसमें 12 फीसदी अकालियों के घटे। कांग्रेस को एक-दो फीसदी मतों का नुकसान हुआ था। लेकिन 2022 के चुनाव में आप ने अकालियों के मत 7 फीसदी और कांग्रेस के 16 फीसदी वोट काटे। जबकि भाजपा वह छह-सात फीसदी मतों पर स्थिर है।

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