उज्जैन । इस बार के कोरोनाकाल में जो जनता कर्फ्यू लागू (The public curfew in the Corona times) किया गया,उसमें लोगों ने स्वयं को घरों में बंद कर लिया वहीं समाजसेवी संस्थाएं भी इतना खुलकर सामने नहीं आ पाई,जितना गत वर्ष आई थी। यही कारण है कि इस बार रोजगार(employment) के अभाव में जवान लड़के भीख मांगने के लिए मजबूर हो गए हैं। उनका कहना है कि मां-बाप ने ईमानदारी सिखाई,इसलिए चोरी करने से रहे। मन मारकर भीख मांगते हैं लोगों से। घरों के आगे हाथ फैलाना मन को अच्छा नहीं लगता,लेकिन बूढ़ी विधवा मां ओर तीन छोटे भाई के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे करें? कोई काम मिल नहीं रहा,भीख जरूर मिल जाती है दिनभर भटकने पर।
देवास मार्ग पर नागझिरी क्षेत्र में गांधी नगर नामक बस्ती है। यहां पर एक परिवार है,जिसमें बूढ़ी विधवा मां और पांच भाई-बहन रहते हैं। दो भाई तो किशोरावस्था पार करके जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके हैं। ये दोनों भाई रोहन और लोकेश अपनी मां तथा तीन छोटे भाई,बहन का पालन पोषण करते हैं।
जनता कर्फ्यू के पहले तक रोहन इंदौर से संचालित एक बस का परिचालक था। सवारी भरना और उतारना,उसका काम था। बसों का परिचालन सरकार ने बंद किया और उसके घर का चूल्हा जलना बंद हो गया। इसी प्रकार उसका भाई लोकेश बेलदारी (मकान निर्माण में मजदूरी) का काम करता है। जनता कर्फ्यू के साथ ही मकानों का बनना भी लगभग बंद हो गया। अब दोनों भाई बेरोजगार है। मां इस स्थिति में नहीं है कि काम कर सके।
इन्होंने चर्चा में बताया कि- काम बंद हो गया। लोग गत वर्ष की तरह भोजन के पैकेट बांट नहीं रहे। ऐसे में हमारे सामने समस्या खड़ी हो गई कि पांच लोगों का भोजन कहां से जुटाएं? कोई काम दे नहीं रहा। मां-बाप ने ईमानदारी सिखाई,इसलिए चोरी-गलत काम करने रहे। इसी कारण रोजाना सुबह निकल पड़ते हैं भीख मांगने। कोई रोटी देता है तो कोई सूखा अनाज,या कोई रूपये दे देता है। दिनभर भटकने के बाद इतना हो जाता है कि शाम का और अगली सुबह का भोजन बन जाए। गलियों में भटकते हुए पुलिस की गाड़ी आती है तो छिप जाते हैं। कभी पकड़ में आ जाते हैं तो सारी बात बता देते है। जो विश्वास करता है,छोड़ देता है। जिसको भरोसा नहीं होता वह मजबूरी का फायदा उठाकर पिछवाड़े चार-छ: डण्डे ठोक देता है। गरीबी यह दिन भी दिखा रही है। उन्होंने कहाकि हमारे पास कोई ऐसा कागज नहीं,जिससे दुकान से राशन मिल सके। हम जाएं तो कहां जाएं? Share: