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वैज्ञानिकों ने बनाया ‘मिनी ब्रेन’, लकवा जैसी बीमारियों का इलाज ढूंढना होगा आसान

लंदन। ब्रेन के कॉम्प्लेक्स सिस्टम (complex system) यानी जटिल कार्यप्रणाली की गुत्थी सुलझाने के मकसद से रिसर्च लगातार जारी हैं.  इसी क्रम में ब्रिटिश रिसर्चर्स ने एक ऐसा नया ‘मिनी ब्रेन’ (Mini Brain) विकसित किया है, जिससे लकवा (Paralysis) और डिमेंशिया (Dementia) जैसे घातक व लाइलाज न्यूरोलॉजिकल डिसऑडर (Neurological Disorders) के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल की जा सकेगी और इन रोगों से बचाव के उपाय करना और इलाज ढूंढ़ना ज्यादा आसान होगा. हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है कि साइंटिस्टों ने न्यूरोडिजनेरिटिव रोगों (Neurodegenerative Diseases) से पीड़ित लोगों के सेल्स से मिनी ब्रेन विकसित किया है, लेकिन अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं, उनसे अपेक्षाकृत (comparatively) कम समय के लिए उन्हें विकसित करने में सफलता मिली है. इस मायने में यह पहला मौका है जब यूनिवर्सिटीऑफ कैंब्रिज (University of Cambridge) के साइंटिस्टों ने इसे छोटे अंग जैसे माडल (ऑर्गेनायड्स-organoids) ब्रेन विकसित किया है, जो लगभग एक साल तक चलेगा.



सामान्य तौर पर होने वाला मोटर न्यूरान डिजीज (motor neuron disease) एमायोट्राफिक लैटेरल स्क्लेरोसिस (amyotrophic lateral sclerosis) अक्सर फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया (ALS/FTD) से ओवरलैप होता है. ये बीमारी आमतौर पर 40-45 साल की उम्र के बाद होती है. इसमे मसल्स कमजोर पड़ जाती हैं और याददाश्त, व्यवहार और व्यक्तित्व में बदलाव आ जाता है.

240 दिनों के लिए बनाए मॉडल
नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल (Nature Neuroscience Journal) में प्रकाशित इस रिसर्च के निष्कर्ष में बताया गया है कि टीम ने स्टेम सेल (Stem cell) से ये म\डल 240 दिनों के लिए बनाए, जिसमें एएलएस/एफटीडी में सामान्य आनुवंशिक उत्परिवर्तन (common genetic mutation) हुए. पहले की रिसर्च में यह संभव नहीं था. इतना ही नहीं, एक अनपब्लिश रिसर्च में इसे 340 दिनों के लिए विकसित करने की बात बताई गई है.

बीमारी के बढ़ने की वजह
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ क्लिनिकल न्यूरोसाइंसेज (Department of Clinical Neurosciences) के डॉक्टर एंड्रास लकाटोस (András Lakatos) बताते हैं कि न्यूरोडिजनेरिटिव विकृतियां (neurodegenerative disorders) बड़ी ही जटिल होती हैं और ये कई प्रकार के सेल्स को प्रभावित करती हैं, जिसमें समय के साथ सेल्स की प्रतिक्रियाओं की वजह से बीमारी बढ़ती जाती है.
डॉ लकाटोस आगे बताते हैं, कि इन जटिलताओं (Complications) को समझने के लिए हमें ऐसे मॉडलों की जरूरत होती है, जो ज्यादा समय तक चले और इंसानी ब्रेन की कोशिकीय संरचना (cellular structure) को दोहराए ताकि उनमें होने वाले बदलाव को गहराई से समझा जा सके. हमारे मॉडल से इसका अवसर मिलेगा.

नए मॉडल में क्या खास है
डॉ लकाटोस का कहना है कि हम इस मॉडल से यह तो समझ पाएंगे ही कि रोग के लक्षण उभरने से पहले क्या कुछ होता है, साथ ही यह देखने को भी मिलेगा कि समय के साथ सेल्स में किस प्रकार के बदलाव आते हैं.आमतौर पर ऑर्गेनायड्स सेल्स के गेंद जैसे रूप में विकसित होते हैं, लेकिन इस रिसर्च टीम ने रोगियों की कोशिकाओं वाला ऑर्गेनायड्स प्रयोगशाला में स्लाइस कल्चर में विकसित किया है.

ऐसे मिली मदद
इस तकनीक से यह सुनिश्चित होता है कि मॉडल की अधिकांश कोशिकाओं (Cells) को जीवित रहने के लिए जरूरी पोषण मिलता रहता है. इस वजह से टीम को ऑर्गेनायड्स की कोशिकाओं में होने वाले शुरुआती बदलाव भी देखने को मिले.

ऐसे प्रभावित होता है मसल्स मूवमेंट
इससे कोशिकीय तनाव, डीएनए को होने वाले नुकसान और डीएनए के प्रोटीन में एक्सप्रेस होने की क्रियाविधि (methodology) को भी परखा जा सकता है. ये बदलाव नर्व सेल्स और ब्रेन के अन्य सेल्स को भी प्रभावित करते हैं, जिसे एस्ट्रोग्लिया (astroglia) कहते हैं और यह मसल्स के मूवमेंट और मेंटल कैपेसिटी को नियोजित करता है.

इलाज विकसित करने में मिलेगी मदद
इस नई रिसर्च से विकसित ऑर्गेनायड्स से न सिर्फ बीमारी होने के बारे पता चलेगा, बल्कि इसका इस्तेमाल संभावित दवाओं की स्क्रीनिंग में भी हो सकता है. इसके आधार पर नई दवाएं विकसित करने का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है. रिसर्च टीम ने दर्शाया है कि जीएसके 2606414 नामक ड्रग एएलएस/एफटीडी में होने वाली सामान्य कोशिकीय समस्याओं (cellular problems) से राहत देने में प्रभावी रहा है. इससे टाक्सिक प्रोटीन के संचयन (accumulation of toxic proteins), कोशिकीय तनाव (cellular stress) और तंत्रिका कोशिकाओं के क्षय (loss of nerve cells) जैसी प्रक्रियाओं को रोक कर इलाज का नया तरीका ढूंढ़ा जा सकता है.

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