राजनीति

राज्यसभा चुनाव के लिए BJP के सामने आया मुश्किल सवाल

नई दिल्ली। लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट पर चुनाव की घोषणा हो गई है। बिहार की इस एकलौती राज्यसभा सीट पर 14 दिसंबर को उपचुनाव होना है. एनडीए की ओर से रामविलास पासवान की जगह कौन राज्यसभा जाएगा, इसको लेकर सभी के मन में सवाल है। हालांकि, एलजेपी के हिस्से की यह सीट उसी के खाते में रहेगी या नहीं, इसको लेकर संशय बरकरार है।

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने जिस तरह से सीएम नीतीश कुमार को टारगेट किया और जेडीयू के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे। ऐसे में जेडीयू ने साफ कर दिया है कि अगर राज्यसभा की सीट के लिए एलजेपी से किसी प्रत्याशी का नाम तय होता है तो जेडीयू द्वारा उसे समर्थन नहीं दिया जाएगा। वहीं, जेडीयू के समर्थन के बगैर एनडीए के लिए यह सीट जीतना मुश्किल है।

बता दें कि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के 2019 में लोकसभा सांसद बनने से राज्यसभा सीट खाली हुई थी, जिसके बाद लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे के समझौते के तहत बीजेपी ने अपने कोटे से रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजा था। ऐसे में पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट पर जिस तरह से समीकरण बन रहे हैं, उससे फिर से यह सीट बीजेपी के खाते में चली जाने की संभावना दिख रही है।

एलजेपी के समक्ष संकट यह है कि उसके पास महज एक विधायक है। ऐसे में जीतना तो दूर की बात है, पांच प्रस्तावक भी अपने दम पर पूरे नहीं हो पा रहे हैं। जेडीयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश सरकार में वरिष्ठ मंत्री विजय चौधरी ने रविवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि बीजेपी को इसके लिए सोचना चाहिए। एलजेपी प्रत्याशी के चलते बीजेपी भागलपुर विधानसभा की सीट हार गई है और जेडीयू को भी कई सीटों पर नुकसान हुआ है।

जेडीयू के अशोक चौधरी, वशिष्ठ नारायण सिंह और दूसरे बड़े नेता भी एलजेपी को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाने की बात कह चुके हैं। ऐसे में जेडीयू के तल्ख तेवर को देखते हुए केंद्र में बीजेपी की सहयोगी एलजेपी को यह राज्यसभा सीट देना मुश्किल लग रहा है, क्योंकि एलजेपी प्रत्याशी उतरता है तो जेडीयू समर्थन नहीं करेगी। जेडीयू के समर्थन के बिना एनडीए के लिए यह सीट जीतना मुश्किल लग रहा है।

दरअसल बीजेपी में राज्यसभा के लिए कई दावेदार हैं, लेकिन जदयू-एलजेपी के कड़वे रिश्ते के चलते बीजेपी को अपने ही किसी सर्वसम्मत प्रत्याशी को आगे करना होगा। पिछले तीन दशक से सुशील कुमार मोदी बिहार में बीजेपी की पहली पंक्ति के नेता रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी जगह तारकिशोर को डिप्टी सीएम बना दिया गया है। ऐसे में बीजेपी सुशील मोदी को राज्यसभा के जरिए केंद्र में लाने का फैसला कर सकती है।

सुशील मोदी के नीतीश कुमार से करीबी रिश्ते को देखते हुए जदयू को उनके नाम पर कोई आपत्ति नहीं होगी। बीजेपी को सुशील कुमार मोदी के नाम पर एनडीए के अन्य दलों के विधायकों को भी एकजुट रखने में भी मदद मिल सकती है। सीटों पर जीत हार के समीकरण के लिहाज से इस एकमात्र सीट को निकालने के लिए किसी भी गठबंधन के पास विधानसभा में बहुमत का होना जरूरी है।

वहीं, अगर विपक्ष की ओर से भी प्रत्याशी खड़ा कर दिया जाता है तो 243 सदस्यीय विधानसभा में जीत उसी की हो सकती है, जिसे प्रथम वरीयता के कम से कम से कम 122 वोट मिलेंगे. हालत यह है कि कोई भी दल अकेले इस अंक के आसपास भी नहीं है. ऐसे में गठबंधन के सहयोगी दलों का साथ होना जरूरी है. बीजेपी को अपने कोटे की इस सीट को बचाने के लिए जेडीयू की मदद की दरकार होगी.

 

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