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नेत्रहीन थे गीतकार रविंद्र जैन, मन की आंखों से देखते थे

अलीगढ़ में जन्मे रविन्द्र जैन की आंखें यूं बंद थीं कि बचपन में ही चीरा लगाना पड़ा था, आंखें तो दिखने लग गईं लेकिन आंखों से कुछ न दिखाई दिया। डॉक्टर बोले कि शायद बाद में दिखाई दें, उम्मीद है, पर ईश्वर शक्ति से रविन्द्र जैन के मन की आंखें रोशन हो उठी, अजीब इच्छा शक्ति और कड़ी मेहनत के बलबूते पर वे आज भी हिन्दुस्तानियों के दिलों पर राज करते हैं ।

रविन्द्र जैन कहा करते थे …मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूं, उसने मेरी आंखों की बजाय मेरा दिमाग और मन रोशन किया है आपका जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। पिता पं. इन्द्रमणि जैन. वैद्य थे, रविन्द्र को एक छोटा हारमोनियम खरीद कर दिया, रविन्द्र को अपने साथ मंदिर लेकर जाते थे रविन्द्र पहले तो ये भजन सीखते फिर धीरे-धीरे गाने भी लगे जैन साहब वही संगीतकार है जिसने अपनी मधुर आवाज से टीवी पर प्रसारित होने वाले रामानन्द सागर की रामायण में चौपाईया गाई जिनके संगीत को हम आज भी गुनगुनाते है । 1960 में प्रतिभूषण भट्टाचार्य उनको मुंबई लेकर गये और उनको फिल्मो में काम दिलाया, उन्होंने सौदागर, चोर मचाये शोर, गीत गाता चल, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, पहेली, अंखियो के झरोखे से और नदिया के पार जैसी मशहूर फिल्मों के लिए संगीत दिया। धारावाहिकों अलिफ लैला, श्रीकृष्णा, जय गंगा मैया, साईंबाबा और माँ दुर्गा जैसे पौराणिक धारावाहिकों में रामानन्द सागर के साथ काम किया। 9 अक्टूबर 2015 को 71 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया था।

यह है रविन्द्र जैन के सुपरहिट गीत
गीत गाता चल…ओ साथी गुनगुनाता चल, जब दीप जले आना, ले जाएंगे…ले जाएंगे…दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में, ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए, एक राधा…एक मीरा, अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे, सजना है मुझे सजना के लिए, हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं , श्याम तेरी बंशी पुकारे राधा नाम, कौन दिशा में लेके, सुन सायबा सुन…प्यार की धुन व टीवी सीरियल रामायण की सभी चौपाई और भक्ति गीत आज भी घर-घर में गायी जाती है, उनकी फिल्मों के गीत परिवारों में पसंद किए जाते है।

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