विदेश

पाकिस्तानी विदेश नीति पहली बार फेल, पड़ोसियों से खराब होते रिश्तों को लेकर विशेषज्ञों ने फटकारा

इस्लामाबाद: भारत (India) की नफरत में पाकिस्तान (Pakistan) ने जिस आतंकवाद (terrorism) को बनाया आज वही उसके गले की हड्डी बन गया है। यही वजह है कि पाकिस्तान के उसके सभी पड़ोसियों (neighbors) से संबंध खराब है। पाकिस्तान के वैसे तो तीन पड़ोसी हैं। लेकिन पीओके (POK) पर कब्जे से उसकी सीमा चीन से लगती है, जिससे उसके चार पड़ोसी हो जाते हैं। भारत से तनाव तो पाकिस्तान के बनने के बाद से ही है। लेकिन इतिहास (history) में पहली बार पाकिस्तान के संबंध किसी भी पड़ोसी से अच्छे नहीं कहे जा सकते। संघर्ष और टकराव पाकिस्तान के लिए गंभीर चुनौती है। इसे लेकर हाल ही में सीनेट रक्षा समिति के अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन ने द ट्रिब्यून एक्सप्रेस में एक लेख लिखा।



इसमें उन्होंने सभी पड़ोसियों के साथ खराब रिश्तों का जिक्र किया और सुधारने के तरीके बताए। इसके अलावा कहा कि रणनीतिक स्पष्टता की कमी और आंतरिक कलह और अंतहीन राजनीतिक अस्थिरता के साथ, 2017-2024 के दौरान पिछले 7 वर्षों में पाकिस्तान को 7 प्रधानमंत्री मिल चुके हैं। पड़ोसी देशों को लेकर आखिर पाकिस्तान की रूपरेखा क्या होगी? भारत के अफगानिस्तान और ईरान से बढ़ते संबंधों को लेकर उन्होंने चिंता जताई और कहा कि वह रणनीतिक पहुंच विकसित करने में पाकिस्तान से आगे निकल रहा है। भारत ने हाल ही में ईरान के चाहबार बंदरगाह को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है, जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के करीब है। साथ ही तालिबान शासन ने चाबहार बंदरगाह में 35 मिलियन डॉलर का निवेश करके अपना पहला बड़ा विदेशी निवेश किया है।

चीन से भी हुए मतभेद
हुसैन ने आगे कहा कि पाकिस्तान का पिछले पांच वर्षों में तीन पड़ोसियों से सैन्य झड़पें हुई हैं। भारत के अलावा अब अफगानिस्तान और ईरान के साथ भी सीमा पर झड़प हुई। यह झड़प तब हुई जब पाकिस्तान ने तीनों देशों की सीमा पर इलेक्ट्रिक बाड़ लगाई हुई है। तीसरे नंबर पर हुसैन ने बताया कि 50 वर्षों में पहली बार पाकिस्तान और चीन के बीच रणनीतिक क्षेत्रीय मुद्दे पर मतभेद देखा गया। चीन ने अफगान तालिबान शासन को मान्यता दे दी है और वह उसके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने में लगा है। चीन अब अफगानिस्तान में निवेश भी कर रहा है। अकेले खनन में निवेश 4.5 अरब डॉलर होने जा रहा है। इसके विपरीत पाकिस्तान ने अफगान तालिबान से संबंध शत्रुतापूर्ण बनाए हुए हैं। यह पश्चिमी दृष्टिकोण को दिखाता है।

भारत के कॉरिडोर पर जहर
हुसैन ने कहा कि अब चीन और अमेरिका के बीच शीत युद्ध चल रहा है। इसने और भी आक्रामक रूप ले लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि पाकिस्तान के साथ अमेरिका सुरक्षा सहयोग फिर से शुरू करना चाहता है। वह ड्रोन बेस, खुफिया उपस्थिति बढ़ाने और एयर लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशंस तक पहुंच की तलाश में है। अपने लेख में उन्होंने आगे कहा कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की ‘नकल’ के तौर पर जी-20 में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर को बनाने की कोशिश हुई, जो अब शुक्र है कि गाजा के मलबे में दब गया। उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान आज के समय अंदरूनी विद्रोहियों से भी परेशान है।

पाकिस्तान को दी नसीहत
अपने लेख में हुसैन ने पाकिस्तान को तीन नसीहत भी दी है। पहले में उन्होंने कहा चीन के साथ संबंध बेहतर बनाना चाहिए। पीएम शहबाज शरीफ की आगानी यात्रा का यह उद्देश्य होना चाहिए। चीनी नागरिकों पर हमले से विश्वास हिल गया है।
दूसरा, पाकिस्तान को ‘बंकर मानसिकता’ और सुरक्षा-केंद्रित मानसिकता को अलविदा कहकर भू-आर्थिक कनेक्टिविटी के आधार पर व्यापार और बातचीत के लिए सीमाएं खोलनी चाहिए। अन्य तीन पड़ोसियों के साथ संबंधों को रीसेट करने की सख्त जरूरत है। इसके लिए अफगानिस्तान को चीन, पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में लाना होगा। ईरान पाकिस्तान गैस पाइपलाइन का निर्माण करना होगा। इसके अलावा भारत के साथ तापी गैस पाइपलाइन के जरिए जुड़ना होगा।
उन्होंने अपनी नसीहत में तीसरा तरीका ऐसा बताया, जिसके लिए पाकिस्तान को स्वाभिमानी बनना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को किसी भी हालत में एक नए बड़े गेम के लिए अमेरिका के लालच को स्वीकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह विनाश का कारण होगा।

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