भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

बाल कल्याण समितियां प्रतिष्ठा बढ़ाने के मंच न बनें : प्रियंक कानूनगो

  • पुनर्वास के वैकल्पिक प्रकल्पों की आवश्यकता: मकरंद देउस्कर
  • सीसीएफ का दो दिवसीय सम्मेलन शुरू, मुख्यमंत्री आज लेंगे भाग

भोपाल। चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इंडिया के दो दिवसीय सम्मेलन का शुभारंभ आज प्रशासन अकादमी में हुआ।उदघाटन समारोह के मंच पर भोपाल पुलिस आयुक्त मकरंद देउस्कर, सेवा भारती राष्ट्रीय सन्गठन मंत्री विजय पौराणिक,फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा,प्रख्यात चित्रकार सत्यनारायण मौर्य,सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे उपस्थित रहे।अंतिम सत्र में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने प्रतिनिधियों को संबोधित किया ।दो दिन तक चलने वाले इस राष्ट्रीय सम्मेलन में कल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर भी भाग लेंगे ।फाउंडेशन के इस जमावड़े में मध्य प्रदेश के अलावा देश के 20 राज्यों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। आज चार सत्रों में किशोर न्याय अधिनियम एवं एकीकृत बाल संरक्षण योजना के विभिन्न पहलुओं पर ग्रुप डिस्कशन एवं विशेषज्ञ वक्ताओं के वक्तव्य संपन्न हुए।
उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए भोपाल के पुलिस आयुक्त मकरंद देउस्कर ने कहा कि आज देश में संरक्षण औऱ जरूरतमंद बालकों के पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था पर समावेशी स्वरूप में बदलाव की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में पुलिस हस्तक्षेपनीय मामलों में बालकों को परिवार में सुमेलित करने को बालकों के सर्वोत्तम हित मे निरूपित किया गया है।लेकिन आंकड़े बताते है कि यौनशोषण के मामलों में 95 फीसदी आरोपी बालक के परिजन या पहचान वाले ही होते हैं ऐसे में परिवारों में पुनर्वास के प्रावधान न्यायसंगत नही हैं।श्री देउस्कर ने कहा कि जेजे एक्ट के तहत गठित की गई विशेष किशोर पुलिस इकाई की उपलब्धता पर्याप्त नही है।बेहतर होगा 12 साल तक के बच्चों के मामले में सीधी पुलिस करवाई के स्थान पर शिक्षा जैसा विभाग चिन्हित बालकों के मामले में पुनर्वास को सुनिश्चित करने का काम करें।
सेवा भारतीय राष्ट्रीय के सह संगठन मंत्री विजय पौराणिक ने अपने उदबोधन में कहा बाल कल्याण समिति में काम करने वाले लोग किशोर न्याय अधिनियम में समाज के जागरूक लोगों की संवेदनशील भागीदारी सुनिश्चित करता है।सीडब्ल्यूसी प्रामणिक रूप से तभी काम कर सकता है जब अधिकार के स्थान पर नैतिक दायित्व की भावना प्रमुख हो।श्री पौराणिक ने कहा कि किशोर न्याय कानून के तहत अभी भी 80 फीसदी से अधिक बच्चों तक स्टेक होल्डर्स की पहुँच सुनिश्चित नही हुई है इसलिए अभी इस क्षेत्र में बहुत काम किये जाने की चुनौती है।उन्होंने कहा कि केवल कानून के निर्माण से समाज मे आदर्श व्यवस्था खड़ी नही की जा सकती है इसके लिए समग्र समाज को अपनी नैतिक जबाबदेही को संवेदनशीलता के साथ समझना होगा।श्री पौराणिक ने जोर देकर कहा कि जब सामाजिक दायित्व को हम पोस्ट मान लेते है तब अधिकार औऱ अहंकार खड़ा होता है वही दायित्वबोध कर्तव्यों के जागरण को सुनिश्चित करता है।
प्रख्यात आशु चित्रकार औऱ कवि सत्यनारायण मौर्य ने रोचक और प्रामणिक तरीके से बाल संरक्षण की मौजूदा अवधारणा को वैश्विक आधार पर रेखांकित किया।श्री मौर्य ने जोर देकर कहा कि पश्चिमी देशों में रिश्तों का कोई भावनात्मक महत्व नही है इसलिए वहां परिवारों में पुलिस का भय और हस्तक्षेप अधिक है जबकि हमारे लोकजीवन में परिवारबोध की प्रधानता रही है जिसके क्षरण के कारण बचपन पर संकट खड़ा नजर आता है। श्री मोर्य ने कहा कि नैसर्गिक अभिरुचियों को प्रोत्साहित करने से देश मे बेरोजगारी की समस्या नही थी क्योंकि हमारे घरेलू व्यवसाय हुनर को समुन्नत करते थे।आज यह घरेलू कौशल खत्म किया जा रहा है।नतीजतन बाल अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए बाल संरक्षण आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि जल्द ही मिशन वात्सल्य योजना मौजूदा आईसीपीएस का स्थान लेगी।इस योजना को पहले से अधिक प्रभावी और समावेशी बनाया गया है।उन्होंने बताया कि आयोग ने सरकार को यह सुझाव दिया है कि बाल कल्याण समितियों के सदस्यों को अगले कार्यकाल के रूप में अध्यक्ष के रूप में नियक्ति की पात्रता दी जाए।उन्होंने बताया कि देश मे कुछ एनजीओ भारत तोड़ो अभियान का हिस्सा है जिन्हें दुनिया भर से अप्रत्यक्ष तरीके से वित्तीय सहायता भी मिल रही है।उन्होंने कहा कि मप्र सहित देश भर में संविधान की अनुसूची 11 का उल्लंघन कर त्रिस्तरीय पंचायत राज प्रतिनिधियों को शिक्षा अधिकार कानून के तहत प्रशिक्षण और क्षमतावर्धन से वंचित किया जा रहा है।बाल कल्याण समितियों को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि एक्ट में न्यायिक शक्ति बालकों के कल्याण के लिए दी गई है लेकिन कुछ लोग इसका दुरुपयोग अपनी प्रतिष्ठा औऱ अहं की संतुष्टि के लिए कर रहे हैं।श्री कानूनगो ने चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के सम्मेलन में आये सभी बाल अधिकार कार्यकर्ताओं से कहा कि भारत का बचपन सांस्कृतिक सीमाओं के दायरे में रहे इसके जिम्मेदारी बाल कल्याण समितियों की है।

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