- नाथ को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है सोनिया, शिवराज की
- राह और होगी आसान, प्रदेश की राजनीति में बदलेंगे कई समीकरण
इन्दौर। प्रदेश की राजनीति में आने वाले दिनों में नई राजनीतिक समीकरण नजर आ सकते हैं। कांग्रेस आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिल्ली बुला सकती हैं। कल असंतुष्टों को मनाने के लिए आलाकमान ने जो बैठक बुलाई थी, उसका जिम्मा भी कमलनाथ को सौंपा। दूसरी तरफ आयकर जांच में कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा में शामिल हुए मंत्री और विधायक भी फंसे हैं, जिनमें सिंधिया समर्थक भी शामिल हैं। नतीजतन अब सिंधिया भी दबाव में आ गए। उनके समर्थक एक मंत्री ने तो इस्तीफा देकर जांच का सामना करने की बात भी कही है।
प्रदेश की राजनीति में इन दिनों लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कालेधन के इस्तेमाल को लेकर चुनाव आयोग की रिपोर्ट को लेकर खासा हल्ला मचा है। इसमें चुनावी फंड के रूप में कालेधन के इस्तेमाल का खुलासा हुआ है। इधर कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने 23 असंतुष्टों को मनाने की जिम्मेदारी कमलनाथ को सौंपी और कल दिल्ली में इसको लेकर बैठक भी हुई, जिसमें कमलनाथ शामिल हुए। दरअसल सोनिया के विश्वस्त सलाहकार अहमद पटेल का पिछले दिनों निधन हो गया था। इसके कारण सोनिया को एक पुराने विश्वस्त सलाहकार सहयोगी की जरूरत है और कलमनाथ चूंकि न सिर्फ वरिष्ठ हैं, बल्कि गांधी परिवार से लंबे समय से जुड़े भी हैं, लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस आलाकमान कमलनाथ को दिल्ली बुलाकर कोषाध्यक्ष या अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती हैं, क्योंकि कमलनाथ के देश के सभी बड़े औद्योगिक घरानों से भी व्यक्तिगत संबंध हैं। इसके चलते कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी वे बखूबी निभा सकते हैं। अगर कमलनाथ की दिल्ली वापसी होती है तो प्रदेश की राजनीति में फिर दिग्विजयसिंह ही वरिष्ठ नेता के रूप में बचेंगे। इसके चलते मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की राह और भी आसान होगी, क्योंकि अभी आयकर जांच के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दबाव में आ गए हैं, क्योंकि उनके समर्थक दो मंत्रियों के साथ चुनाव जीते और हारे समर्थकों के नाम भी हैं, जिसके चलते अब सिंधिया भाजपा पर अधिक दबाव भी नहीं बना सकेंगे। हालांकि इनमें से एक मंत्री प्रद्युम्नसिंह तोमर ने तो इस्तीफा देकर जांच का सामना करने की बात भी कह दी है। हालांकि भाजपा के लिए भी यह मुश्किल होगा कि वह आयकर के इस मामले की जांच कराए, क्योंकि कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा में शामिल हुए मंत्री, विधायकों के नाम भी हैं और जांच रिपोर्ट में जिन दो विभागों पर उंगली उठाई गई है, उसके भी मंत्री सिंधिया समर्थक ही रहे हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति में नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं।
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