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Report: युवाओं में लगातार बढ़ रहा कैंसर का खतरा, 20% मरीज 40 साल से कम उम्र के

नई दिल्ली (New Delhi)। देश के युवा (Indian youth) कैंसर (Cancer) की गिरफ्त में हैं। यह खुलासा ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist) के एक समूह के शुरू किए एनजीओ कैंसर मुक्त भारत फाउंडेशन की रिपोर्ट (Report of NGO Cancer Free India Foundation) में हुआ है। एनजीओ की कैंसर मरीजों के लिए चलाई जाने वाली हेल्पलाइन पर दूसरी राय लेने के लिए फोन करने वालों में 20 फीसदी कैंसर मरीज 40 साल की कम उम्र के हैं। यह साफ इशारा है कि युवाओं में कैंसर बढ़ रहा है।


कैंसर मुक्त भारत फाउंडेशन के मुताबिक, मरीजों के लिए निशुल्क दूसरी राय लेने के लिए हेल्पलाइन नंबर (93-555- 20202) शुरू किया गया। यह सोमवार से शनिवार तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चालू रहता है। कैंसर मरीज प्रमुख ऑन्कोलॉजिस्ट से सीधे बात करने के लिए इन हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर सकते हैं या कैंसर के इलाज पर चर्चा करने के लिए वीडियो कॉल भी कर सकते हैं। इस हेल्प लाइन पर एक मार्च से 15 मई के बीच 1,368 कैंसर मरीजों की कॉल उन्हें आई थीं। एनजीओ के मुताबिक, सबसे ज्यादा कॉल हैदराबाद से थीं। इसके बाद मेरठ, मुंबई और नई दिल्ली का नंबर था। इनमें 40 साल से कम उम्र के कैंसर मरीजों में 60 फीसदी मरीज पुरुष थे।

सिर और गर्दन के कैंसर सबसे अधिक
अध्ययन में देखा गया कि सबसे अधिक सिर और गर्दन के कैंसर (26 फीसदी) के थे। इसके बाद गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर (16 फीसदी), स्तन कैंसर (15) फीसदी) और फिर रक्त कैंसर (9 फीसदी) थे। अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में 27 फीसदी मामलों में कैंसर का पता चरण 1 और 2 और 63 फीसदी में चरण 3 या 4 में पहुंचने पर पता चलता है। हेल्पलाइन पर कैंसर रोगियों आम सवाल अपने इलाज के सही, अपडेटेड, नवीनतम होने और दवाई को लेकर थे। वहीं, कई मरीज अपने कैंसर के चरण और रोकथाम के बारे में जानकारी लेते थे।

उपचार में मिलेगी मदद…
कैंसर मुक्त भारत अभियान का नेतृत्व करने वाले मुख्य अन्वेषक और वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. आशीष गुप्ता का कहना है कि हेल्पलाइन नंबर के लॉन्च के बाद से यह पूरे भारत में कैंसर मरीजों के लिए मददगार प्रणाली साबित हुई है। इस पर हर दिन लगभग सैकड़ों कॉल आती हैं। यह अध्ययन हमें इलाज के लिए अधिक लक्षित कैंसर दृष्टिकोण अपनाने और भारत को कैंसर मुक्त बनाने में मदद करता है। भारत जैसी बड़ी आबादी वाली देश में सही स्क्रीनिंग को कम अपनाने की वजह से लगभग दो तिहाई मामलों में कैंसर का देर से पता चलता है।

कैंसर मरीज निजी अस्पतालों के भरोसे
अध्ययन से पता चला कि 67 फीसदी कैंसर रोगी निजी अस्पतालों में तो 33 फीसदी सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे थे। डॉ. आशीष गुप्ता का कहना है कि हमारे देश में बढ़ता मोटापा, आहार संबंधी बदलाव, खास तौर से अल्ट्रा- प्रोसेस्ड भोजन की खपत में बढ़ोतरी और गतिहीन जीवनशैली भी उच्च कैंसर दर को बढ़ा रही है।

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