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बच्चों के हाथों में कत्ल का हथियार… जान लेने वाले नाबालिग करार… दिया निबंध की सजा का उपहार….


– वो कैसा बच्चा जिसकी सोच में दौलत और शराब का नशा शामिल हो

कातिल हूं तो क्या हुआ नाबालिग (minor) हूं…मेरे देश का संविधान (Constitution) मुझे कत्ल की इजाजत देता है…चाहे जिसका खून बहाऊं बच्चा (child) समझकर छोड़ देता है…मैं निर्भया (nirbhaya) के साथ निर्दयता में शामिल रहूं या मदहोशी (madahoshee) में राह चलतों को रौंद दूं…मैं चोर-उचक्का, डकैत बनूं मेरे सारे गुनाह माफ (crime forgiven) हैं, क्योंकि मैं बच्चा हूं…हर शातिर ख्याल मेरे जेहन में आते हैं…समाज के लोग मुझसे थर-थर कांपते हैं… मैं गली का गुंडा बन जाऊं… शहर में दहशत फैलाऊं… या देश की संगीन वारदात में शामिल हो जाऊं…मुझे न न्याय का प्रहरी डरा पाएगा…न जज की कुर्सी पर बैठा शख्स मुझे सजा दे पाएगा…हर अपराध से मैं आजाद हो जाऊंगा…मैं इस देश के संविधान को चिढ़ाऊंगा…क्योंकि मैं बच्चा हूं…मेरी करतूतों पर देश उबलता है…हर शख्स मेरे अपराध पर शर्मिंदा होता रहता है…कोई जुलूस निकाले, प्रदर्शन करे या धरना दे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है…आक्रोश की आग से मुझे क्या कोई झुलसा पाएगा… संविधान का दायरा मुझे बचाएगा… मैं हर बार बच्चा बनकर निकल जाऊंगा…. लोगों को चिढ़ाऊंगा… हरकत भले ही मेरी शैतानों की है…करतूतें मेरी हैवानों की हैं…मैंने निर्भया को नोंचा-रौंदा, तब देश कुछ नहीं कर पाया है तो अब 2 लोगों की मौत पर क्यों गुर्राया है… आखिर किया क्या है मैंने… पिता की अमीरी की मदहोशी में ही तो खुद को डुबाया है…चंद बोतलों को ही तो तो हलक में उतारा है…अपनी ही करोड़ों की गाड़ी को ही तो दौड़ाया है…फिर कोई मेरी गाड़ी के नीचे आया है…मौत का अंजाम पाया है तो भी कोई मेरा क्या बिगाड़ पाएगा…मैंने नाबालिग का तमगा जो लगाया है…इस बेशर्म सोच के साथ इस देश में ढेरों नाबालिग सामाजिकता और सभ्यता को रौंदते हुए दानवी और पाश्विक हरकतों को अंजाम देते चले आ रहे हैं…और हम उम्र और अपराध का अंतर ही नहीं मिटा पा रहा है…इतना भी नहीं कर पा रहे हैं कि उस नाबालिग की आपराधिक मानसिकता के सहभागी उसके मां-बाप को कोई सजा दें… पुणे में हुई घटना के जिम्मेदार दौलत के नशे में डूबकर अपने बेटे को शराब में डुबाने वाले और गाड़ी की चाबी थमाने वाले बाप को क्यों न सूली पर लटका दें…उस मयखाने को बंद कराएं…उस पर मुकदमा चलाएं, जिसने एक नाबालिग शैतान को शराब पिलाई, जिसने कइयों की जिंदगियां मिटाईं…ऐसे दरिंदे हत्यारे को सजा देने में कानून भी बौना हो जाता है… इंसाफ की कुर्सी पर बैठा जज निबंध लिखने की सजा देकर पल्ला झाड़ता है और पूरा देश अवाक रह जाता है…संविधान बदलना चाहिए…पहले कानून का कत्ल बंद होना चाहिए…ऐसे कातिलों को सजा मिलना चाहिए, चाहे वह बच्चा हो या नाबालिग…जिसकी सोच में शराब का नशा शामिल हो वो बच्चा कैसे हो सकता है…जिसके जेहन में बाप की दौलत का अहंकार हो वह नाबालिग कैसे हो सकता है…हम निर्भया से निर्दयता करने वाले दरिंदे की आजादी पर खामोश रहे…अब निरपराधों की मौत पर निबंध की सजा पर यदि खामोश रहेंगे तो रोष का ऐसा तूफान खड़ा हो जाएगा कि संविधान का विधान शर्मसार नजर आएगा…हमें इस शर्मिंदगी से बचना होगा…इस दरिंदगी से लड़ना होगा…देश तरक्की करे-न करे नाबालिगों के इस पतन को रोकना होगा…कम से कम यह तो समझना होगा कि इंसाफ यदि इंसान का खून बहाने वाले को नाबालिग कहकर छोड़ता जाएगा तो जवान होने से पहले ही बच्चा अपराधी बन जाएगा…

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